Thursday, 30 July 2015

कविता १०४. पानी का बहना

                                                                  पानी का बहना
पानी को तो बस बहना है उसे छू कर खुशियों को समजना है पानी के उस बहने से जीवन को हर पल समजना है पानी को छू लेने से चंचलता तो मिल जाती है
पानी को हम समज लेते है तो उसमें हम दुनिया पाते है पानी की हर एक बून्द में दुनिया को समज जाते है पानी को जो हम समजे तो दुनिया को क्या समज पाते है
पानी के हर एक रंग में हम अपनी दुनिया पाते है पानी को बस छू लेते है तो खुशियाँ पाते है पानी में जब जब हम देखे अपना ही रूप पाते है
वह रूप हमें जो छू लेते है उसके अंदर दुनिया पाते है पानी के रूप अलग है जिनमे जीवन दिखता है पानी के भीतर दुनिया का भी अनोखा रंग दिखता है
पानी में कई कई तरह के रूप हमें दिख जाते है उस पानी में जो जीवन है उसे हर बार हम नहीं समज पाते है पानी में जो ठंडक है
वह हम कई और कभी भी नहीं पा सकते है जब जब पानी को छू लेने पर मनको खुशियाँ देते है पानी तो वह एक अहसास है जो हर बार हमें छू लेता है
पानी तो वह सोच है जो हमें खुशियाँ दे जाती है पानी के हर एक रूप में हमें दुनिया नयी नज़र आती है जब जब हम आगे बढ़ते है
खुशियाँ हमें नज़र आती है जो पानी हमें देता है क्युकी पानी तो बचपन का साथी है पानी तो वह बात है जिसमे दुनिया नज़र आती है
हाथ जब पानी में डालो तो मन को ठंडक मिल जाती है पानी तो वह चीज़ है जिसमे पानी के अंदर जीवन होता है पानी को जो देखो तो भी दुनिया नयी दिखलाता है
पानी तो वह साथी है जो हर बार नज़र आता है जो खुशियाँ दे कर दुनिया को नयी नयी उम्मीदों को जगह दे देती है पानी को  समज लेने पर दुनिया सुंदर लगती है
पानी को समजो तो उसमे भी खुशियाँ हासिल हो जाती है पानी की वह बून्द हमें खुशियाँ देती यही पानी तो अपना साथी है नदियाँ हो या नल हो वही खुशियाँ देता है 

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