Friday 10 July 2015

कविता ६३. सही राह पर चलना

                                                           सही राह पर चलना
जब हम कहते है और लोग समज जाते है हमे लगता था वह प्यारा मंजर होगा पर आजकल देखा है हमने हर बार और समजा है
लोग हमे समजे उसे भी कुछ नहीं हासिल होगा हर बार किसी मोड़ पर जब हम मिलते है दिखते है कई मंजर जिनका जिंदगी में असर होता है
हर बार जो हम किसीको समज लेते है तो उसे समजने का भी एक मतलब होता है पर जब हम गलत को सही बना लेते है तो भी आगे क्या यही मंजर होता है
लोग सही को समज भी ले पर फिर यह समजना भी अहम होता है की आगे क्या करेंगे इस दुनिया में उसे समजना जरुरी होता है
की आगे क्या करना है यह दिल समजता ही नहीं तो अगर हम किसीको समजाना चाहे तो पहले हमे यह जानना जरुरी होता है
आगे बढ़कर हर बार हमे समजना होता है की जिन्दगी में कई मोड़ तो दिखते ही रहते है पर गलत को सही कर के नहीं चुप रहना होता है
आगे बढ़ने के कई मोड़ होते है जिन पर चलकर हमें गिरकर संभलना है पर सबसे पहले यह जरुरी है की हमे संभलना जरुरी होता है
सिर्फ गलत को सही करना काश काफी होता दोस्तों पर आगे नयी राह बनाना भी बहोत जरुरी और अहम ही होता है
पर जब गलत राह पर हम चलते है और उनसे गुजरते है उन राहों को समजना जरुरीसा लगता है क्युकी सही राह तो अहम है
पर सिर्फ उसे बताना मुनासिब नहीं होता उसे समजना और उसके साथ चलना भी पड़ता है जिन्दगी में आगे  बढ़ना सही राह पर चल के दिखाना सही होता है 

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