Wednesday 15 July 2015

कविता ७३. वक्त को समजना

                                                              वक्त को समजना
कुछ बाते ऐसी होती है जो हम समजना पाते है पर सिर्फ उस वक्त को थोड़ा मौका दो वक्त हमें समजता है
पर हम उनको समजना पाते है क्युकी हम वक्तके आगे जाना चाहते है वक्त तो सब सुलजाता है पर हम जाने क्यों उसे उलजाते है
वक्त को एक मौका दे तो वक्त सब कुछ समजता है वक्त तो एक ऐसी चीज़ है जिसमें हर बार नया मोड़ आता है
हम जब जब उसको समजेंगे हर बारी हम जीतेंगे हमें मन से यह समजना जरुरी है की वक्त सब कुछ सुलजाता है
पर जब जब हम वक्तके आगे भागे है राहों में बस काटे है हर बार हमें जब वक्त उम्मीद देता है सारी दुनिया में वक्त ही बस अहम लगता है
पर वक्त के हाथ में जाने क्यू हम जीवन देने से कतराते है सच तो बस यही है हर बार हम कुछ चाहते है बार बार जब हम जीतना चाहते है
तो जाने क्यों आगे बढ़ने से कतराते है वक्त के हाथ में अपने जीवन की डोरी ना देना चाहते है वक्त सब कुछ सही करता है पर हम उसी वक्त से ही जाने क्यू कतराते है
वक्त  को एक मौका दे कर देखे तो वक्त सब कुछ सही कर देता है पर इसी वक्त के अंदर कई चीज़ों का लेखा जोखा है
अगर हम वक्त को समज लेते है तो जिन्दगी को सुलजा पाते है वक्त तो वह ताकद है जिसमे हम हर रोज नयी दुनिया पाते है
वक्त तो वह चीज़ है जिसमे उम्मीदों के तराने है वक्त को बस एक मौका दे तो वक्त में  कई अफ़साने है पर हम हर बार खुद को वक्त ही नहीं देते है
तो वक्त हमें क्या दे पायेगा जो वक्त के साथ भागता है वक्त को समज कैसे पायेगा जब हम भागे उस पल हम इधर उधर ही नहीं देख पाते है
समज पाते है की हम उसी वक्त को सिर्फ दौड़ लगाते है काश के हम कुछ वक्त दे खुद को और वक्त को समज पाते पर फिर लगता है
की सब कुछ ठीक है वक्त को समजे नहीं तो क्या वक्त तो हमे समज कर हमारी उलजन सुलजाता है 

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