Wednesday 1 July 2015

कविता ४५. एक बंदा

                                                                      एक बंदा
कुछ बातों को समजना मुश्किल नहीं नामुकिन सा लगता है पर फिर भी वह बात हम कहते है
क्युकी हमे अच्छा लगता है जो एक इन्सान भी उसे समजता है हम जान गये है की एक सुननेवाला भी
जिन्दगी में काफी होता है आखिर सौ की क्या जरूरत जब एक ईश्वर भी दुनिया को चलने के लिए काफी होता है
तो उस खुदा का एक बंदा काफी होगा हमारे लिए दोस्तों क्युकी उपरवाला तो दुनिया चलाता है
और हमे सिर्फ खुद को चलना है आगे बढ़ने से ख़ुशी हासिल होती है दोस्तों पर हमे एक इन्सान की मदत से भी
कभी कभी आगे चलना पड़ता है सिर्फ सही होना काफी नहीं है दोस्तों क्युकी मेहनत तो सही के लिए भी
भगवान चाहता है तुम उस उप्परवाले को किस नाम से पुकारो फरक नहीं पड़ता दोस्तों वह इन्सान नहीं है
जो सिर्फ जूठी तारीफ से पिघलता है वह तो इस तरह की ताकद है जो सिर्फ हमारी मेहनत को देखता है
और हमारी इन्सानियत को गिनता है उसके दर पर कितनी बार भी जा ओ दोस्तों अगर मेहनत नहीं तो सुनवाई नहीं  होती है
उस के दर पर कितनी बार माथा रगड़ो दोस्तों पर दूसरे के दर्द में न रोये तो उसे तुम्हारी पुकार सुनाई नहीं देती है
एक इन्सान जो सही समझले दोस्तों वही काफी है जिन्दगी में भीड़ की  कोई जरुरत नहीं क्युकी भगवान के दर में शिफारिश की जरुरत नहीं है
तुम इसे जिस नाम से पुकारो वह हमारी  जिन्दगी में आता है दोस्तों पर तभी जब उसे पुकारे दिल से एक इन्सान ही काफी है 
अगर सही राह हम चले कुछ ढूढ़ने की जरुरत नहीं है एक साथी है काफी क्युकी खुदा है खड़ा तुम्हारे लिए और वह काफी है 
रोज जीने के लिए क्युकी उम्मीद ही हमे सही राह दिखती है और फिर धीरे धीरे लोग मिलते है सही राह पर हमारे साथ चलने के लिए 

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