Thursday 23 July 2015

कविता ९०. तरीकों को बदलना

                                                           तरीकों को बदलना
पानी के छूने से जीवन पावन सा हो जाता है पर हर बार पानी हर चीज़ को तो नहीं बदल पाता है तो हर बार पानी जो सबकुछ धो लेता है
वह हर चीज़ साफ रखने के काम हर बार पानी आता है पर हर चीज़ ऐसी नहीं होती जिस पर पानी ही काम आता है आग पे उसको डालो तो वह मुसीबत बन जाता है
दुनिया हर चीज़ एक ही चीज सही नहीं होती चीज़ों को समजना मन को अहम सा लग जाता है पानी सी वह चीज़ आसान नहीं होती है
क्युकी हर चीज़ में अलग मतलब मन को  नज़र आता है हर वही सीधीसी राह नहीं होती जो काटो पर चलती है दर्द भी देती है ऐसी आग हर बार मिटानी नहीं होती है
क्युकी वही आग कभी चुल्हा जलाती है वही आग कभी सर्दी से बचाती है हर बार जीवन में वही कहानी नहीं होती है जिस मोड़ को ना समजे हम वह खुशिया बेईमानी नहीं होती है
क्युकी हम समजे या ना समजे उन खुशियों को हमारी किस्मत में तो लिखा है उन्हें पाना हक्क हमारा होता है तो आग को हम ना मिटाये यही हमारी खुद पे मेहेरबानी होती है
हर बार एक ही बात दोहराने से अच्छा है नयी बात को समजना भी जीवन में कभी कभी जरुरी होता है क्युकी हर बार पुरानी बात काफी नहीं होती है
आगे बढ़ जाओ जीवन में नयी चीज़ों के साथ यह बहुत जरुरी होता है क्युकी कभी कभी पुराने रास्त्तो में भी मुसीबतों का न्यौता होता है
हर बार चीज़े वही नहीं होती कभी कभी फरक को समजो यह भी हर बार जीवन में बातो को समजना जरुरी होता है और वह बाते बदलती रहती है
हर बार चीज़े वही नहीं होती है चीज़े बदलती है उनके साथ बदलना भी हर बार अहम और जरुरी होता है तो चीज़ों को समजना भी जरुरी होता है तरीको को बदलना भी जरुरी होता है 

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