Friday 17 July 2015

कविता ७८. दोस्त की खोज

                                                            दोस्त की खोज
जब हम दोस्ती का सोच काश वही हमें हमारे दोस्त मिल जाये जब हम  हसकर देखे काश उस पल उम्मीद बन जाये
पर जिन्दगी में यह होना आसान नहीं होता एक दोस्त का मिलना इतना मुश्किल है की तूफानों से जुजना आसान लग जाये
हर बार दोस्त नहीं बस मिलते है साये या फिर यही सच हो की हम दोस्त पेहचान नहीं पाये जिन्हे हम दोस्त समजते चले आये
हर बार उन्ही दोस्तों ने हमें जिन्दगी में दिये साये यह सच तो नहीं है की सही दोस्त नहीं होते पर काश कुछ दोस्त हमारी किस्मत में भी लिखवा लाये
ढूढ़ने पर अक्सर लोग मिलते है जो हर पल साथ देने का वादा करते है पर हर बार हमने यही देखा है दुःख में तो छोड़ो पर सुख में हसने के काम भी दोस्त नहीं आये
शायद चुनने पर भी हमने गलत लोग ही पाये अब तो लगता है फिर से हम चुनेंगे फिर से हम अपने मन से नये दोस्त ढूढेंगे यही मन चाहे अगर फिर से शुरू करे तो इस बार शायद सही दोस्त हम पाये
आखिर जो गलती से सीखे वही इन्सान कह लाये शायद पहले हमने रोशनी की जगह चुने बस साये तो उस बार क्यों न हम नयी उम्मीदों से ढूढे और भुला दे वह साये
यह बात नहीं है बस मेरी हर किसी के साथ बस ऐसा ही होता है उम्मीदों से ही इन्सान कुछ खोज पता है तो भूल कर वह साये
हम जब शुरुवात करे फिर से तभी तो जिन्दगी में हमारे आयेंगे नये उज्जाले और निकल जायेंगे वह अँधेरे के खौफनाक साये
दोस्त तो सही मिलेंगे पर यह आसान नहीं होगा क्युकी सही दोस्त को जाना तूफानों को पार करने से भी मुश्किल हम जरूर हर बार पाये 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५१२४. बदलाव को लहरों की।

                                बदलाव को लहरों की। बदलाव को लहरों की मुस्कान कोशिश सुनाती है दिशाओं को नजारों संग आहट तराना सुनाती है आवाजों...