Sunday 12 July 2015

कविता ६७. पत्तों की कहानी

                                                             पत्तों की कहानी
उन पौधोंने जो बात कही वह दिल ने आज दोहराई है मन के उस अंधियारे में उम्मीद की ज्योत जगायी है
मन  खुशियों  से भरा हुआ हो या कोई चीज़ खोया हुआ हो फिर भी उस मन में एक किनारे में  कोई खुशियाँ समायी थी
उस पौधे ने मन के उसी मंदिर में ज्योत जगायी है मन तो विधाताका वह मंदिर है जिस में पावन सोच ही समायी है
वह तो अपनी अपनी गलत सोच है जो मन को मैला कर जाती है पर जब एक पौधा छू लेता है ऐसा लगता है
उसने छू लिया है
हर पल मन के अंदर अक्सर नयी सोच जगाई गयी है उन अँधियारो से बचकर मन में उजियाले की उम्मीद हर पल आयी हुई है
हम जब जब भी सोचे मन मंदिर में एक नयी सोच जिन्दगी में समायी हुई है हर एक फूल को चाहा हमने पर अभी पत्तोने भी हमसे प्यार की उम्मीद जगाई है
फिर से जिन्दगी ने हमे काटों से दोस्ती की कहानी सिखाई है जब फूलों को इतना प्यार मिला तो पत्तों ने भी अपनी कहानी सुनाई है
क्या हम बस फूलों को चाहते है यह वह बिन फूलों की डाली पूछ रही है जब उसकी और नज़र घुमाई तो इन्कार करने से नज़र कतरा रही है
सारे तरह के पत्तों में से कुछ पत्तों ने हिम्मत दिखाई है वह पास आकर पूछ रहे है क्या हमारा प्यार सिर्फ फूलों  के लिए है और उनके लिए सिर्फ तनहाई है
जब मन के उसे कोने में जिस में हमने अपनी चाहत छुपायी है उसने आवाज दे कर कहा है की प्यार तो सबके लिए है
क्युकी प्यार तो ईश्वर की दुआ है जिस में कोई अपना नहीं और ना हो कोई पराया है तो उस प्यार के मंदिर में फूल, पत्ते और काटे सबकुछ समाया है 

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