Friday 3 July 2015

कविता ४९. दाता का तोहफा

                                                              दाता का तोहफा
हर फूलों में जो खुशबू है हम उसे हर बार चाहते है उस खुशबू में हम कई ख्वाब हमेशा पाते है पर वह खुशबू
जो वह जिन्दगी में चाहते है कभी पाते है कभी खोते है क्युकी कागज के भी दुनिया में कुछ फूल होते है
जिन फूलों को चाहा हमने हर बार सही नहीं होते है कुछ सोच और कुछ रिश्तों में हम बस खोते ही रहते है
खुशबू के चाहत में तरसनेवाले कई लोग दुनिया में होते है कुछ पा लेते है खुशबू को कुछ कभी नहीं पाते है
पर अफ़सोस तो उन लोगों का होता है जिन्हे हम अक्सर देखते है वह कागज के फूलों में ही अपनी दुनिया ढूढ़ते  है
जो फूल कभी ना दे वह कुछ लोगों के लिए खूबसूरत भी होते है पर जो नासमजीमे ले कर फिर भी ना समजे उन पर ही हम रोते है
जिस फूल में खुशबू भरी हुई हो उसे दुनियावाले ना जुटला सकते है वह समजते है  वह चुनेंगे पर फूल की खुशबू तो सिर्फ ईश्वर ही चुनते है
आप जो सोचो और जो समजो पर खुशबूवाले फूल ही खुशबू देते है जो खुशबू मन को भाती है वही मन को खुशियाँ देती है
लोग लाख कहे कुछ भी फिर भी आखिर में वह खुशबू को ही चुनते है दुनिया तो बनी है कई तरह की सोच से पर
आखिर में सब खुशबू को ही चुनते है
हर बार जब लोगोके मन में आता है वह उन फूलों को ठुकरा देते है आखिर वह लोग उन्ही फूलों को चुनते है
दुनिया को बस खुशबू भाती है पर हर बार काटे जब चुभते है बीन सोचे वह अक्सर कागज के फूल भी चुनते है
जब जब हम आगे बढ़ जाये हम इसी उम्मीद में जीते है कुछ हासिल करने की सोच में जीवन पथ पर चलते है
पर उन फूलों से सीखते है की हमे बस खुशबू देनी है क्युकी जब फूल खुशबु देते है तो कभी भी कुछ नहीं माँगते है
उसी लिए शायद मुरजाये फूल भी कई बार खुशबू देते है यह उस दाता का तोहफा है जो हम सब को जीवन देते है 

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