Saturday, 11 July 2015

कविता ६५. लहरो के आगे

                                                      लहरो के आगे
नयी तरह की हवाओँ को बारिश जब छू लेती है उस हवा में हम कोई ना कोई नयी ख़ुशी जरूर पाते है
हर बार जब हवा मन को खुशियाँ दे जाती है क्युकी हर बार वह हवा हमें नयापन दे देती है और उस हवा का प्यारा स्पर्श हमें ख़ुशी देता है
नये नये तरीकों से बारिश हमें खुशियाँ देती है पर हर बार जब हम जिन्दगी में आगे बढ़ते है तो सारी दुनिया से बुराई धो देते है
सिर्फ बारिश नहीं ओर सारी नदियाँ और कई तरह के रूप में पानी हर बार उन्हें धो लेते है बुराई को मन से धोने में लिए काश पानी ही कही हो जाता यह ख़याल ही मन को भाता है
बाकि सारी चीज़ों  को भी हम आसानी से समज पाते पर मन की बुराई को काश की हम खत्म कर पाते पर ऐसा होता नहीं है
मन का मैल निकल जाता नहीं है हर बार जब हम कोई सोच जो सही और बराबर होती है तो जब गलत चीज़ को रखते है
और हर बार गलत सोच को रोकने है के लिए हर बार सोचते रहे है सभी सोच जो नये नये तरीकों से दुनिया को छू लेती है
हर बार बुरी सोच  का होना बहुत मुश्किलसा लगता है क्युकी हर राह पर हम अलग अलग सोच रखते रहते है
पर कोई सोच उस तरह से नहीं धुलती है जैसे पानी सबकुछ धोता है सोच को बदलना बड़ी मुश्किल से ही मुमकिन होता है
हर बार सही सोच जो हम राहों में पाते है उसी सोच को बार बार हम समजना चाहते है पर दूसरों को बदलना इतना आसान नहीं होता है
इसी लिए तो हम अपनी सही सोच को दिल में रखते है और बार बार बस यही कहते है चाहे कुछ भी हो जाये हम वही सोचते है 

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