Thursday 29 December 2016

कविता ११३९. हर बार किनारे पर रहकर।

                                      हर बार किनारे पर रहकर।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि प्यास नही बुझती जीवन एक दरिया है जिसे समझ लेने कि आस आसानी से नही सुलझती उसकी प्यास हर पल को कोई एहसास देकर आगे बढती रहती है जो आसानी से जीवन आगे लेकर नही बढती है।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि सौगाद एहसास देकर नही बढती है किनारों से चलकर दुनिया हर मौके पर आगे नही जा पाती है कभी कभी पानी मे उतरकर आगे चलते जाने कि उम्मीदे हर बार आगे लेकर चलती है जो किनारे पर नही बढती है।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि सौगाद समझ नही आती है कभी कभी पानी मे उतरकर ही उस प्यास को समझ लेने के लिए जरुरत पडती है जो जीवन को समझकर ही दुनिया को बदलती है वह दुनिया मे किनारे से चलने से आगे नही बढती है।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि दास्तान लिखी नही जाती है हर बार जीवन को कई अंदाजों मे परख लेने कि जरुरत हर मौके पर देकर रहती है हर किनारे पर रहकर जीवन कि दास्तान नही बनती है जो लहरों पर बहे बगैर आगे नही बढती है।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि कहानी अलग पुकार देती है जो जीवन को कई बार किनारे से हटकर पानी मे उतर जाने कि सलाह देती है किनारों पर दुनिया कि सोच अलग एहसास के साथ चलती है जो जीवन मे लहरों मे जाये बिना आगे नही बढती है।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि सौगाद कि अहमियत पूरी तरह समझ नही आती है जो जीवन को कई किस्सों मे आगे लेकर चलती है क्योंकि लहरों पर चलकर हमे आगे बढने कि उम्मीदे हर मौके पर रहती है लहरों पर हिले बिना कभी आगे नही बढती है।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि कहानियाँ सुलझ नही पाती है जो जीवन को कुछ अलग एहसास को परखकर आगे चलती है किनारों मे लहरों के साथ ही तो जीवन कि कहानी आगे चलती है जीवन मे दुनिया के साथ कहानियाँ आगे नही बढती है।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि हकीकत समझ नही आती है जो जीवन मे कभी कभी लहरों कि जरुरत दिखाती जाती है जो जीवन को कई कहानियों मे आगे लेकर चलती है जो जीवन को कुछ अलग सोच देती है जो किनारों से ही हर बार आगे नही बढती है।
हर बार किनारे पर रहकर जीवन कि बाते समझ नहीं आती है कभी कभी लहरों के साथ हिलने कि जरुरत नही होती है जो जीवन को कई किस्सों मे आगे लेकर चलती है जो जीवन मे बदलाव देकर जाती है वह किनारे पर बनती है पर कुछ कहानियाँ आगे नही बढती है।

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