Friday, 31 July 2015

कविता १०६. आँखों ने देखी

                                                             आँखों ने देखी
दुनिया के हर हिस्से में कोई ओर ही नाम लिखा होता है हमने जो आँखों से देखा उस सोच से भी अलग किस्सा बयान होता है
दुनिया के हर किस्से में कोई बात तो है हर अल्फ़ाज़ में अलग अंदाज तो है पर हम तो सिर्फ उसे समजते है जो आँखों ने देखी है
दुनिया की कही पर हमें विश्वास नहीं हम तो बस अपनी आँखों पर यकीन रखते है जो हम सोचते है हर बार वही सोच हम रखा करते है
जिसमे हमें सचाई दिखती है पर जाने क्यों लोग सिर्फ दुनिया पे यकीन   किया करते है जब जब हम आगे बढ़ जाये तो हम आँखों पे ही यकीन करते है
काश के लोग भी आँखों से देख लेते सिर्फ कही पर भरोसा नहीं करते पर लोग अक्सर सिर्फ कही सुनी बातों पर यकीन किया करते है
जब जब हम बात को समज लेते है वह अक्सर हमने खुद से कही होती है क्युकी अक्सर हम बस वही बात समज लिया करते है
जिनमे सारे मतलब है छुपे पर लोग कहा सचाई समजना चाहते है वह तो बस आसान सी बात मन में रखा करते है और उसे समज लिया करते है
सचाई जो मुश्किल लगे तो उसे आसानी से अनदेखा किया करते है जब जब हम समजते है जीवन को वह तो सिर्फ वही है जिसे हम जिया करते है
दुनिया में तो कई रंग होते है कही सुनी बातों से हम सिर्फ सचाई पर यकीन खोते है पर काश के लोग समज लिया करते तो अँधेरे में उम्मीद के दिये जला करते है
आँखो से जो दुनिया दिखाती है उसे हम जीया करते है शायद कुछ लोग समज पाये उसे पर हमें तो हर बार उसे ही समज लिया करते है 

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