Thursday 28 July 2016

कविता. ८३१. धरती को समझकर।

                                      धरती को समझकर।
धरती को समझकर जीवन कि कहानी कुछ अलग एहसास दे जाती है धरती कि निशानी हर पल जीवन को बदलाव देकर आगे बढती चली जाती है।
धरती को समझकर कई हिस्सों मे जीवन कि कहानी समझ लेने कि जरुरत होती है जो हमे अलग एहसास देकर नई रफ्तार देकर आगे बढती चली जाती है।
धरती को समझकर कई किस्सों मे जीवन कि कहानी हर पल अलग निशानी देती है जो जीवन को समझकर आगे पिछे चलते जाने कि जरुरत हर पल जीवन को होती है।
धरती को समझकर कई हिस्सों मे उसे समझ लेने कि जरुरत हर मौके पर होती है जो जीवन कि कहानी बनाकर आगे बढती रहती है जीवन को बदलकर चलती है।
धरती को समझकर कई खयालों से उसकी कहानी परख लेनी जरुरी होती है जो हमे जीवन मे हर पल अलग अलग मौकों पर कई तरह कि कहानी सुना लेती है।
धरती को समझकर कई किनारों मे हर पल उम्मीदे रहती है जो हमे आगे लेकर चलती है जीवन को अलग अलग किस्सों मे समझ लेने कि अहमियत होती है।
धरती को समझकर कई मोड पर जीवन कि कहानी बनती है उन सब मौकों को जोड ले तो जीवन कि निशानी बदलती है जो हमारी कहानी दिखाती है।
धरती को समझकर हमे उसे कई हिस्सों मे समझ लेने कि जरुरत हर बार मायने रखती है जिसकी कहानी बनती है जिसके सहारे जीवन कि नई दिशाए दिखती है।
धरती को समझकर आगे चलते रहने कि जरुरत होती है क्योंकि धरती हमे हर बार उम्मीदे देकर आगे चलती है जीवन मे धरती पर आगे चलने कि निशानी दिखती है।
धरती को समझकर उसके हर हिस्से को चाहने कि जरुरत होती है तभी तो जीवन मे अक्सर अलग कहानी बनती है धरती पर जीने कि सुंदरता समझ आती है।

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