Tuesday 26 July 2016

कविता ८२६. नदीयाँ को बहता देखकर।

                                             नदीयाँ को बहता देखकर।
नदीयाँ को बहता देखकर दुनिया अपना रंग बदलती है मीठे मीठे पानी के आखिर बडे मन से हमारी परवाह करती है मीठे लब्जों से मन को खूश करती है।
नदीयाँ को बहता देखकर आयी हुई दुनिया कई बार उसे मुडता देखकर रंग बदलती है पर कोई फर्क नही पडता है जब दोस्त कि साथ उस पल मिलती है।
नदीयाँ को बहता देखकर आगे चलते रहने कि जरुरत होती है पर कभी कभी नदीयाँ मुड जाती है तब दोस्तों कि नजर भी बदलती जाती है तब मन का दर्द सच्चा हो जाता है।
नदीयाँ को बहता देखकर सबको प्यारी बात लगती है पर कभी कभी नदीयाँ दिशाए भी बदलकर चलती रहती है पर उसके संग दोस्त बात बदले यह बात सही नही होती है।
नदीयाँ को बहता देखकर दुनिया हर बार खुशियाँ बदलकर जाती है पर अगर सच्चा दोस्त हो तो दुनिया उसके साथ बदल जाती है गमों मे भी खुशियाँ नसीब हो जाती है।
नदीयाँ को बहता देखकर जीवन अलग एहसास दिखाकर आगे बढते चले जाते है नदीयाँ का एहसास बदलता है पर जीवन कि धारा दोस्तों कि बजह से नही बदलती है।
नदीयाँ को बहता देखकर जीवन कि दिशाए हर पल बदलती जाती है जिनको समझ लेने कि दुनिया को हर पल जरुरत होती है जो आगे चलने से जीवन कि एक अलग सुबह होती है।
नदीयाँ को बहता देखकर दुनिया तो रंग बदलती रहती है पर अपने जीवन को समझकर आगे चलते रहने कि उम्मीदे हर पल दुनिया को होती रहती है।
नदीयाँ को बहता देखकर हम अपनी राह नही बदल सकते है हमे दुनिया को कई किनारों से पहचान कर सही राह ही चुननी होती है जो दुनिया को सही बना देती है।
नदीयाँ को बहता देखकर जो आता है और उसे मुडता देखकर जाता है वह हमारा दोस्त नही होता है वह सिर्फ दुनिया का हिस्सा होता है जिसे भूला भी दे तो भी जीवन पर असर नही होता है।

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