Thursday 7 July 2016

कविता. ७८८. पानी का बहना।

                                                 पानी का बहना।
पानी को परखकर आगे बढते रहने कि जरुरत नही होती है वह बहता रहता है उसे समझ लेने कि जरुरत नही होती है।
बहना उसकी आदत है उसे आगे बढते रहने कि जरुरत होती है उसे चीजों को समझ लेने कि जरुरत हर बार अलग एहसास दे जाती है।
बहते जाने कि जरुरत हर पल को होती है हमे पानी को अपनी अहमियत को समझाने कि जरुरत नही होती है वह अपने आप मे होती है।
बहना तो उसका मकसद है उसमे जीवन को समझ लेने कि ताकद हर पल होती है जो जीवन को तसल्ली देकर आगे बढती है।
बहना ही तो हमे आगे लेकर चलता है हमे उस बहने कि जीवन मे आदत होती है जो हमे कई बार अलग अलग तरह के खयाल दे जाती है।
जीवन को समझकर और परखकर जीवन मे आशाए हर पल बनती है जो हमे जीवन मे आगे लेकर चलती रहती है उम्मीदे दे जाती है।
पर कभी कभी पानी कि तरह उसे बहते रहने कि जरुरत हर बार होती है जो उसे हर किनारे पर रोशनी देकर आगे बढती है।
बहना ही तो जीवन कि फिदरत होती है जो जीवन को हर मोड पर आगे लेकर चलते जाने कि हर कदम को आदत देती रहती है।
बहने से ही तो दुनिया आगे चलती है उसे रुकने कि जरुरत नही होती है उसे आगे बढते जाने कि ताकद होती है जो उम्मीदे जीवन मे देकर चलती है।
जीवन को समझ लेने कि जरुरत हर पल होती है जो बताता है कि बहते रहना ही जीवन कि हर मोड कि अहमियत होती है जो उम्मीदे दे जाती है।

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