Wednesday 19 August 2015

कविता १४3. एक चोट

                                                                     एक चोट
चाहे कुछ हम कह दे तो जीवन मे फ़र्क़ तो होता है चाहे जीवन कैसा भी मुड़ जाये जीवन का एक मक़सद तो होता है जीवन की किसी धारा मिली मतलब तो छुपा होता है
कहते कहते कभी कभी बिन मतलब की बातें जीवन करने लगता है हर कदम हर सोच मे अलग मतलब ही निकलता है जो जीवन पे असर कर जाता है
जीवन के अंदर जो कोई असर हो जाता उसमें जीवन का कोई ना कोई हिस्सा होता है उस पर असर तो ज़रूर होता है जब हम जीवन को समजे उसमें चोट लगा वह हिस्सा तो आता है
कभी अपनी चोट उठे पर कभी कभी दूसरे की चोट से भी दर्द हमें होता है उस चोट को हर बार जो हम समजे तो उसमें अलग ही मतलब होता है कभी कभी अपने मन से ज़्यादा मन दूसरे को समजता है
उस चोट के अंदर जीवन का नया रुप लाती है क्योंकि कभी कभी गैरों की चोट भी मन का दर्द बन जाती है तभी उस पल जिन्दगी संभल पाती है हमारे लिए हमेशा रोशनी लाती है
चोट वह है जो जीवन मे नया कुछ सिखाती है पर संभल के कुदो तुफानो मे क्योंकि तुफानों मे कई बार कश्ती भी किनारा छोड़ ग़लत दिशामे मुड़ जाती है
सारी उम्मीदें जीवन को नई सोच लेकर आती है हर बार जो हम तुफानों से बिन सोचे टकराये तो कश्ती टूट भी जाती है तो लढना तो है पर हर मोड़ मे संभलकर भी चलना ज़रूरी है
चोट वह है जिसको समज कर आगे बढ़ना ज़रूरी है उस पर कोई ना कोई मलहम भी ज़रूरी है जब हम जीवन को समजे तो सही दिशा को समजना भी जीवन की समजदारी है
चोट वह चीज़ है जिसे हमें धीरे से सुलझानी है एक ग़लत कदम पड़ जाये तो चोट नासूर बन जानी है संभलकर चलो वरना बदल जाती जीवन कि कहानी चोट को संभालकर आगे जाने की कहानी है

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