Monday 17 August 2015

कविता १३९. मंज़िल पर किस्सा

                                                     मंज़िल पर किस्सा
हर मंज़िल पर कुछ तो जरूर लिखा होगा जिसके अंदर कोई ना कोई कहानी का किस्सा तो जरूर बनाया हुआ होता है जब जब हर मोड़ पर कोई तो जीवन का हिस्सा लिखा होता है
हर मंज़िल पर जाने क्यों हर सोच पर कोई ना कोई कहानी का हिस्सा जरूर बना होगा कभी कभी हर मोड़ पर नया तरीका लिखा होता है जिसको समजे तो जीवन का मतलब छुपा होता है
किसी मंज़िल के अंदर कहानी का नया हिस्सा बना होता है जिसे हम समजे तो जीवन का एक नया दिलचस्प  किस्सा लिखा हुआ हर पल मिलता है
जिस मोड़ पर जीवन को समजो तो उसमे जीवन का नया हिस्सा दिखाई देता है जब जब हम आगे बढ़ना चाहे तो मंज़िल पर कोई अलग किस्सा दिखाई देता है
जिस किस्से में हम जी चुके हो वह हिस्सा मन को फिर से प्यारा सुनाई देता है हर मंज़िल को जीवन की नयी दुआ देती  है जब जब हम समजे जीवन सच है
तो उसमे नयी शुरुवात सुनाई देती  है मंज़िल के अंदर नयी शुरुवात दिखाई देती है जो जीवन को हर पल जिन्दा जाने क्यों कर देती है शायद जीवन के हर हिस्से पर अहसास दिखाई देता है
उस मंज़िल को जिसको हम समज न सके उसी का अल्फाज दिखाई देता है जब जब हम आगे चलते है नया जीवन उम्मीद देता है
और उसी जीवन के हर मोड़ पर फिर से जीने की उम्मीदों का मतलब हर बार दिखाई देता है जीवन की एक नयी शुरुवात वह दिखाता है
जीवन के हर मंज़िल में नयी उम्मीदों को  शुरुवात वही देता है पर जब जब हम जीवन को समजे तो वह जाने क्यों जीवन की  नयी पुकार दिखाई देता है
हर मंज़िल पर नयी किसम की सोच दिखाई पड़ती  है जिसमे जीवन की एक नयी सोच भी जिन्दा होती है मन को खुशियाँ आसानी से देती है
पर अफ़सोस तो इस चीज़ का है की वही सोच कभी कभी इस छोटे से जीवन में दुःख भी जरूर दे जाती है मन में तकलीफे भी देती है 

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