Wednesday 12 August 2015

कविता १२९. दिल समज न पाया

                                         दिल समज न पाया
हर बार जो समजाया फिर भी दिल समज न पाया जो पहले से जानते हो उन्हें क्या कहना और हमने क्या समजाया
जब जब हम आगे जाये हमे जीवन ने समजाया आगे बढ़ना बड़ा अहम है उनका कहना हमारी समज मे आया या फिर ना आया
जब जब जीवन मे जीते है जीवन ने वही किस्सा दोहराया हम कहते है उन लोगों से जिनको सुनना नहीं है पर हमने वह दोहराया
हम हर बार समजाते रहते जो हमे कोई क्या समजाये समजे हुए वह सारे लोग फिर भी जाने क्यू बार बार वही समजाना पड़ता है
पर यही तो जीवन का अफ़साना होता है जीवन मे हर बार काम को बिना बजे दोहराना पड़ता है और सुनना पड़ता है
जब जब हम जीवन को समजे उसे सही तरीक़े से समजना और समझाना पड़ता वह हर बार अपनी मर्ज़ी से ही चलता है
गेहराई से अगर हम समजे तो जाने क्यू जो काम नहीं है ज़रूरी उसे भी जीवन मे दोहराना पड़ता है फिर से उस जीवन को समजना पड़ता है
जीवन तो ऐसी चीज़ है जिससे बार बार कुछ सीखना होता है शायद इसीलिए हर चीज़ को दोहराना पड़ता है आगे जाना है मन को
फिर भी मन को कभी कभी पीछे जाना पड़ता है पर उसके आगे दौड़ लगाना पड़ता है जब जब हम आगे बढ़ते जाते है
जीवन को समजना पड़ता है और कभी कभी उसो बार बार दोहराना पड़ता जीवन के कुछ मसल्लों का पार कर जाना पड़ता है


No comments:

Post a Comment

कविता. ५१५०. अफसानों की समझ अक्सर।

                           अफसानों की समझ अक्सर। अफसानों की समझ अक्सर आवाज दिलाती है तरानों को कदमों की आहट परख दिलाती है दास्तानों को एहसास...