Friday 14 August 2015

कविता १३४. तितलीसा सपना

                                                  तितलीसा सपना
जीवन में कई तरह के सपने तो होते है कुछ छू कर आसमान दिखाते है जिन सपनों को समजो उन से ही दुनिया बन जाती है सपनों के अंदर दुनिया समाती है
हर बार जीवन मे एक उम्मीद सी लाती है लेकिन सपने भी तितली कि तरह है फूलों पे उड़ते रहते है कभी इस फूल को समजते है कभी किसी और फूल पर चलते है
जीवन तो वह सपना है जो हर बार रंग बदलता है उस सपने को समजले जिस मे हमारी दुनिया रहती है पर हर बार सपने कि तितली अलग फूल ही चुनती है
पर ऐसा भी नहीं होता की हम बिन सपने के रह जाते है नया सपना हमारी ओर नयी तितली बन के आता है जिसे जीने की कोशिश मे फिर से हम जुट जाते है
नये नये सपने तो हर बार हमे बेहलाते है क्यू ना देखे हम उस सपने को जो खुद ही पास हमारे आते है पर काश की वह हमेशा पास ही रहते पर वह दूर निकल भी जाते है
नादान नहीं है पर फिर भी हर सपने को हम चाहते है पूरा हो या ना हो फिर भी चोट उसी से खाते है सपना तो वह तितली है जो हर मोड़ को जागती है नयी आहट मन मे आती है
तितलीसा तो वह सपना है जो हर इन्सान के पास जाता है सबको लुभाता है और फिर निकल भी जाता है उसके ख्वाब मे अगर हम डूबे रहे तो जीवन मे यह तकलीफ़ लाता है
क्योंकि अगला सपना जो मन को पास बुलाता है उम्मीदों से उस सपने के ओर हर बार दिल निकलता रहता है हर बार सपने के अंदर जीवन का मतलब प्यारासा नज़र आता है
रोज़ नये सपने के अंदर जीवन हर बार जिन्दा हो जाता है हर बार जीवन हमे नयी नयी ख़ुशियाँ दे जाता है पर कई बार हमे असर कर जाता है
जीवन एक तितली कि तरह है जो हमे बदलना समजाता है अगर हम बदलना समज गये तो जीवन को आगे बढ़ाना आता है जीवन का मज़ा जिन्दा हो जाता है

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