Thursday 6 August 2015

कविता ११७. इशारों मे जीवन

                                  इशारों मे जीवन
जब हम कुछ  कह जाये चुपके से आप समज लेना यही तो जीवन है जिसमे है इशारो का आना जाना
जब हम जीवन मे चलते है हर बार इशारो का ही हर जगह पर आना जाना जाने क्यों इन्सान कहने से यू डरते है की
उन्हे ही समजते है अपना अहम गहना उनके संग ही रहते है हम पर हर बार जरुरी है उनका आना जाना
जब जब हम जीवन को समजते है हर बार जरुरी है उन्हे समजना अगर हम समज पाये जीवन को तो जरुरी है की
हम समज जाये उन इशारों का कहना हर बारी हर मोड पर जीवन अलग ही होता है कुछ कहना
अगर हम आसानी से समजले तो क्या बूरा है बातों का मुँह पर कहना जीवन जो आगे ले जाये वह लगता है गहना
पर फिर भी लोगों से डरके हम ने उलझाया है हर पल अपना जीवन जब जब हम समजाये वह इशारा है सबसे बेहतर सपना
पर वह तो ऐसा सपना है जिसमे हर पल उलझा है जीवन अपना क्यूकी वह इशारा जो हम को समजा दे जीवन वह नही बना अपना
इशारों के अंदर हम उलझे है हम तो आजकल सोचते है काश सीधी बात होता बचपन की तरह जीवन अपना
कर सकते है आसानी से पर हम डरते है सुलझाने से हर बार उलझा जीवन अपना

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