Tuesday, 11 August 2015

कविता १२८. कोई सवाल

                                                       कोई सवाल
कभी किसी सवाल को हम समज ना पाये जो जवाब को हमारा ढूँढ़ना ज़रूरी है पर अक्सर उसे भुला के आगे चले जाते है
लोग अक्सर ढूँढ़ते है जवाबों को दुनिया मे हम उन्हें ढूँढ़ने से बेहतर समजते है क्यू न हम आगे बढ़ जाये जाने क्यू ढूँढ़ने से बेहतर हम आगे बढ़ जाये
जीवन के हर मोड़ पर अगर आगे बढ़ जाये तलाश से बेहतर है क्यू ना जिन्दगी को अपने दम पर अपने तरीक़े से जीये जाये
जीवन के अंदर हम हर बार अपने से जी ले तो ख़ुशियाँ पाये हर मोड़ पर हमे मिले जीवन मे जाने कितने साये अगर उनके पीछे हम भागे
तो जीवन उन्न्ही  के पीछे ही बस बीत जाये कैसे हम जीये जब आसान नहीं होगा ढूँढ़ना उन चीज़ों को जो सवाल जागे तो क्यू ना हम उम्मीदों को समजे
क्यू हर बार हम सवालों के पीछे भागे आख़िर उम्मीद ही जीवन का फसाना बनेगी सवालों से ज़्यादा उम्मीदो से ही जिन्दगी बनेगी
सवाल तो कई हमेशा मिलेंगे उनके भरोसे कहा जिन्दगी गुज़ार लेंगे हर बार जो हम जिन्दगी को जीयेंगे चाहे उसे कितना हसके जीना चाहे हमे बस आँसू ही मिलेंगे
सवाल जो मन को तसल्ली दे ऐसे कभी होते नहीं हर बार जीवन को सवालों की नहीं जवाबों तलाश है जो हमे अक्सर मिलते नहीं
तो क्यू सुने सवालों को उनसे कुछ हम हासिल नहीं कर पाये अगर हम आगे चलते गये तो अपने आप सुलज जायेंगे वह साये
सवालों को छोड़ो बस आगे चलते जाते है तभी मिलते है हर बार किसी ना किसी तरह से हमे ख़ुशियों के साये जिन्हें पाकर मन हर बार मुस्कुराये



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