Tuesday, 25 August 2015

कविता १५५. दूसरे के ख्वाब

                                                                   दूसरे के ख्वाब
हर बार जब हम समजते है बातों को उनमें जीवन का कुछ तो असर होता है उस जीवन को समज लेते है तो उस मे अलग तरह का एक मंजर होता है
चाहे जीतना हम चाहे पर कुछ तो छूट ही जाता है अलग अलग चीज़ों का कुछ तो असर होता है पर हर चीज़ को दिल कहा समज पाता है कई बार दुनिया मे समजना पड़ता है
सही सोच को कहा दिल आसानी से सुन पाता है कई बातों के जंगल मे एक बात सही होगी जैसे कुछ फूलों की ख़ुशबू ही हमारे नसीब मे होगी दुनिया के हर फूल को हम कहा छू सकते है
कुछ फूलों की ख़ुशबू ही हमारे किस्मत मे होती है कुछ फूलों कि ख़ुशबू हम से दूर ही रहती है जो खुशबू हम से दूर ही रहती है वह हमे कभी नहीं मिल पाती है
जीवन में सबकुछ पाना तो मुमकिन ही नहीं पर कुछ बाते तो जीवन में हासिल हो जाती है जिनको हम समजे यह जरुरी नहीं पर याद वह अक्सर आती है
जब जब हम उनके संग चले वह बाते मन को नहीं समज में आती है उन्हें जीना थोड़ा मुश्किल है पर मन की कल्पना में वह जिन्दा हो जाती है
जिस पल हम जीवन को समज गये जीवन में नयी बहार आती है जिसे हर बारी हम नहीं समजते पर कभी तो हमे मिलती है और कभी तरसाती है
जो मिल जाये उसे हम छू ले यही सही राह जीवन की होती है जो ख्वाब हमने देखे है उनमे दुनिया अच्छे से जिन्दा होती है
हम जिन्हे समज सके उन ख्वाबों में खुशियाँ हर बारी पैदा होती है कुछ ख्वाब तो हासिल है जिनमे जीवन की उम्मीदे होती है
तो बस उन ख्वाबों को थाम कर ही हमारी दुनिया चलती है बुरा नहीं है की दूसरे ख्वाबों को भी समजो पर बुरा है की उनसे दुनिया जलती है 

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