Wednesday 26 August 2015

कविता १५८. जीवन का आगे बढना

                                            जीवन का आगे बढना
नदियाँ की धारा संग बहती हमारी जिन्दगी है जिसे हर पल हम बहने देते मज़ा तो उस धारा मे है जिसे आगे बढ़ता देखना चाहते है जीवन के साथ तो हम आगे चलते है
जीवन तो आगे बढ़ती चीज़ है जिसके संग हम आगे चलते रहते है उस जीवन के बढ़ने का मज़ा कुछ और ही है जिसे हम मन से आगे लाते है बढ़ते जाना तो आसान लगता है
हर बार कदम कदम हम आगे बढ़ना चाहते है हर पल को मन से जीवन को जीना जानते है जीवन तो आगे बढ़ता है हर कदम उस संग आगे जाते है जीवन की बहती धारा को जानते है
हर बारी जब वह बहती है जीवन मे ख़ुशियाँ सी रहती है जीवन को परखो तो दुनिया आगे बढ़ती रहती है जब जब हम दुनिया को समजे वह बहती हुईं ही मन को अच्छी लगती है
जीवन बहता जाये तो ही जिन्दगी अच्छी लगती है जीवन हर एक पल को हमे समजना पड़ता है उस जीवन के अंदर आगे तो बढ़ना होता है पर जीवन को धीरे धीरे आगे बढ़ना ज़रूरी है
जीवन के हर मोड़ पर चलते रहता है जीवन तो वह चीज़ है जिसमें आगे बढ़ना ज़रूरी है उस जीवन को समजे उसमें बढ़ना बहुत ज़रूरी है बहते रहना मजबूरी नहीं यह मन की चाहत है जो ज़रूरी है
बढ़ते बढ़ते आगे जाना जीवन कि एक चाहत है जो हर बार मन को ख़ुशियाँ देना हमारे जीवन मे बढ़ने से वही चाहत पूरी होती है वह चाहत है नयी उम्मीदों की वह आगे बढ़ने से ही आती है
जीवन तो हर पल हमे आगे लेता जाता है उस जीवन को अलग अलग मौकों का तोफा मिलता है आगे बढ़ना ही उसमें सबसे आगे ले जाता है आगे बढ़ना तो जीवन का रंग और उम्मीदों की डोरी है
बढ़ना ही चाहत है दिल की वही जीवन की एक आस है जो रुक जाये वह जीवन तो बस प्यास है बढ़ते रहना हर बार एक चीज़ ज़रूरी है बढ़ना धीरे धीरे सीखे यह जीवन मे ज़रूरी है
जो बढ़ना सीख गये उनके लिए जीवन सीधीसाधी बोली है जो बढना ना समजे उसके लिए जीवन एक पहेली है जिसे सुलझाने मे जिन्दगी गुजारना उनकी मजबूरी है

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