Monday, 31 August 2015

कविता १६८. गम को सजाना

                                                                 गम को सजाना
कभी कभी जीवन मे कोई बात मन को छू  लेती है काश वह जीवन जो हमें तस्सली देता है वह बार बार जिन्दा हो सकता है
जब जब जीवन में हर बात को हम समज लेते है तो ही जीवन में सच्चा मजा हर बार आता है जीवन को समजे तो आसानी से जीवन आगे जाता है
जीवन के हर पल में इन्सान उसे जी लेता है खुशियाँ तो सचमुच में वह जीवन में पाता है जीवन तो वह कहानी है जिसे खुशियों से बस भरना है
आगे बढ़ो बस उसी सोच से तो ही जीवन को आप समज पाये हो उसके हर पल में गम तो आते जाते है वह तो जानेवाले तराने है
क्यों गुनगुनाये उन्हें हर बार किसी फ़साने के लिए उनके अलावा भी कई चीजे है मन को बहलाने के लिए अगर ढूँढो तो मिल जाती है
जीवन में वह चीजे मन को उन उंचाई पर लाने के लिए ना बहलाओ मन को गमों से वह सही नहीं है अफ़सानों के लिए जीवन में काटों को नहीं सजाते है
हम अपने घर में उसे खूबसूरत बनाने के लिए काटे नही लाते क्युकी काटे प्यारे नहीं लगते है हमें मन को बहलाने के लिए पर फिर भी हमने देखा है
कई लोगों को उन्ही काटों से अपने घर को सजाते हुए जीवन को समजे हुए क्या कहे हम जीवन को हर फ़साने के लिए काफी नहीं है
हमारा जीवन एक बारी समज आने के लिए जब जीवन को समज पाये हर कहानी के लिए लगता है जीवन बड़ा मुश्किल है समजने और समजाने के लिए है
जीवन के अंदर आते है कई तरह के मोड़ जो मुश्किल है समजने के लिए क्युकी भले हम नहीं चाहते गम समजाने के लिए कई लोग खुश रहते है उनके साथ जीवन जीने के लिए 

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