Tuesday 1 September 2015

कविता १६९. उम्मीदों का किनारा

                                                            उम्मीदों का किनारा 
कभी कभी मन के साथ नया एहसास जब जगता है उम्मीदों का किनारा हर बार हमें मिलता है मन के अंदर सुबह होती है
मन के अंदर नयी कोशिश हमेशा जो जिन्दा करती है वह हमें जो साँसे देती है जीवन के अंदर प्यारे तरह की बातें जो मन को छूती है 
वह नयी नयी चीजों को समजने से ही जीवन में आती है अगर जीवन को परखो तो नयी रोशनी होती है जो हमें नयी आशाए देती है 
बस मन अच्छाई को चाहे तो हर मुश्किल आसान होती है क्युकी उस उप्परवाले की रेहमत से ही तो दुनिया बनती है बिघडती है 
नयी बाते जो मन को छू ले वह जीवन में नयी खुशियाँ देती है परखो जीवन को ध्यान से तो उसमे उम्मीदे मिलती है 
जब जब समजो आप उस जीवन को उसमे खुशियाँ ही मिलती है जब जब उसके अंदर परखो तो नयी दुनिया अक्सर मिलती है 
जाने क्यों अक्सर जीवन में थोड़ी मुश्किल से ही सही राह पता चलती है जिसे हर पल हम जब समजते है उसमे नयी दुनिया खिलती है 
अगर हम समजे अपने जीवन को तो उसके अंदर हर दम खुशियाँ मिलती है जिन्हे अगर जिये हर पल तो ही जिन्दगी बनती है 
जब जब उसे समजो हर मोड़ पर जीवन की खुशियाँ कई हिस्सों में मिलती है जब उन हिस्सों को समजो तो उनमे दुनिया बनती है 
जब जब हम जीवन को परखे तो ही जीवन के साथ नयी और अलग ही मजबूत तरीके की दुनिया इस जीवन में हर पल बनती है 

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