Monday 7 September 2015

कविता १८१. एक दावा

                                       एक दावा
कुछ ऐसी बातें है कुछ ऐसे क़िस्से है जिन्हें हर बार समज के भी हम अनदेखा करते है उन किस्सों में भी कुछ ऐसे हिस्से है जिन्हें भूल नहीं सके हम पर दावा करते है
वह बातें जिनमें हम जिन्दगी बिता देते है वह गलतफैमी है जिसमें हम जीवन आगे बढाते है क्योंकि हम तो अक्सर दावा करते है हम किसी की गलती भुला चुके है
तो फिर हम उसको कैसे दोहराते है हम सबकुछ याद रखते है पर भूलने का दावा करते रहते है हर बार जीवन में हम कुछ तो नया पाते है जो हमने नहीं भूला उसे भूलने का दावा करते है
जिन्दगी के साथ हम आगे बढ़ते है दावों के अंदर हम सच्चाई भुला देते है बार बार जीवन में हम ख़ुशियाँ लाते है पर अगर झूठे दावों से हो तो हम बस उधार कि ख़ुशियाँ लाते है
उन ख़ुशियों से हम कुछ नहीं पाते है हर बार जीवन से उन्हें छिन ले जाते है झूठे दावे तो मन को तसल्ली दे जाते है पर बाद में कुछ इस तरह से रुलाते है की ख़ुशियाँ दे जाते है
दावा तो वह होता है जो जीवन को आगे ले जाये पर सच्चा दावा ही एक चीज़ है जो जीवन को आगे ले जाता है जीवन को वह यह समजाता है की ख़ुशियाँ वही लाता है
जब जब दावा करते है अंदर से कुछ तो असर ज़रूर होता है कभी झूठा बनकर तो कभी सच्चा बनकर जीवन में साफ़ असर दिखाता है पर दावा तो वह होता है
जो जीवन को सही दिशा देता है जिस पल दावे का परखो जीवन में असर दिखता है  दावा तो वह होता है जो सही ग़लत समजना चाहता है दावा एक आइना है
जो जीवन को समजाता है हर बार असर कर जाता है दावा तो होता है जो दुनिया अलग तरीक़े से दिखाता है दावे को कम ना समजो वह जीवन को बनाता है
क्योंकि दावा ही एक चीज़ है जो दुनिया को हर बार सच साफ़ दिखाता है जीवन को हर बार अच्छे से समजता है और जीवन के हर बातों को खोलकर सबकुछ साफ़ दिखता है

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