Saturday 26 September 2015

कविता २१८. हँस कर जी लेना

                                              हँस कर जी लेना
कहते है हर बार हँस कर जीवन को जी लेंगे पर यह बस जीवन कि बात नहीं ग़लत को सही समज के कैसे जी ले जीवन कि हर बारी मे कुछ तो हम समज लेते है
जीवन के सारे एहसास को हर बार हम जी लेते है पर कोई ग़लत को सही कहे तो उसे समज ले ऐसी आसान जीवन कि राह नहीं है जीवन कि चाह तो सबको होती है
पर अपनी ख़ुशी के लिए दूसरों को रोते देखकर भी चुप बैठे यह जीवन कि चाह नहीं है जो हम समज पाते है वहीं जीवन कि सही राह रही है जिसमें सब लोग हँसे बस वहीं राह सही है
जीवन के हर मोड़ पर हँसी को ढूँढ़ते रहना हर बार सही है पर दूसरों से उसे छिन लेना यह बात कभी जीवन मे भाँति नहीं है क्योंकि दूसरों के दर्द से जो मिल जाये वह जसबात सही है
हँस कर जीवन को समज ले वह ख़ुशियों से भरी राह सही है हँसी मे भी दूसरों को ख़ुशियाँ दे वह सोच सही है पर अक्सर लोगों को अपनी ही पड़ी है
जीवन को आगे ले जाती है उस राह पर चलने से पहले दूसरों कि कहा उन्हें पड़ी है सिर्फ़ अपनी सोच से उन्होंने राह चुनी है हर बार जीवन को समज लेने कि मुश्किल बड़ी है
हर बार अगर शांति से सोचे तो मन समजाता है सबके ख़ुशी मे ही हमारी ख़ुशी पर लोगों ने बस दूसरों को समजाने के लिए ही यह बात रखी हुई है
मन के अंदर कुछ तो असर होता है मन मे हर बार अलग अलग तरह के ख़याल हमेशा होते है पर हर जीवन मे कुछ तो असर हमेशा अलग होता है
जो ख़याल ग़लत है वह सोच जो मन पर असर कर जाती है ग़लत तरह कि ख़ुशियाँ जो मन पर असर हमेशा करती है ग़लत सोच जो मन के अंदर असर कर जाती है
सही ख़याल ही आख़िर दुनिया पर कुछ तो असर होता है सही किसम कि सोच जो दुनिया पर असर कर जाती है सही ख़याल ही आगे ले जाते है पर आसान लगते है ग़लत ख़याल जो मन पर असर कर जाते है

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