Monday, 28 September 2015

कविता २२३. खुद के जीवन से समजो

                                                           खुद के जीवन से समजो
पेड़ के ऊपर दिखते कई किसम के पत्ते जो अलग रंगों से जीवन को भर देते है जो जीवन में नया एहसास दे कर जीवन को जिन्दा कर देते है
पर कहाँ कहे हम पत्तों की कहानी जो जीवन में नई कहानी कह देती है पर लोगों को तो दिलचस्प लगता है दूसरों का जीवन वह पत्तों की कहानी कहा सुनते है
पर दूसरों की बाते जो इतनी भाती है तो कभी उनके दुःखों में क्यों नहीं वह लोग रो लेते है पर लोग तो दूसरों के जीवन को अपने मजे के लिए सुनना चाहते है
पर लोगों पर क्या इल्जाम दे हम भी तो अनजाने में कई बार यही तो करते है जीवन को धीरे धीरे हम हर बार परख लेते है
कहानी जो जीवन को जिन्दा कर देती है उसे हम कहाँ समज लेते है जीवन को हर बार समज ले उस में जो अर्थ हम पाते है उसे हम कहाँ समज लेते है
जो जीवन खुद के लिए दिया है उसे दूसरों के जीवन को समज लेने में गवाते है जीवन की हर धारा को हर बार हम समज लेना चाहते है
जीवन को जो समजे तो उसमें अलग अलग एहसास भी पाते है हर बारी जो अपने जीवन को परखे उसे लोग समज आते है
पर हम हर बार किसी गैर को परख कर अपना जीवन सवारना चाहते है जीवन की वह सोच है जिसे खुद के दम पर जाने पर हम दूसरों के दम पर जान लेना चाहते है
जीवन को समजो पर खुद के दम पर क्युकी खुद से ही तो हम जीवन समजना जानते है जीवन के हर रंग से ज्यादा हम जी कर ही जीवन को समज लेना जानते है
जीवन को खुद से समजो तो उसमें सही राह जो मिलती है वह जीवन में हर बार अलग ही असर कर जाती है वह जीवन में कई बार खुशियाँ दे जाती है 

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