Wednesday 30 September 2015

कविता २२७. बातों कि सच्चाई

                                                बातों कि सच्चाई
जब हर लब्ज के अंदर कुछ तो मतलब छुपा होता है पर कभी कभी बिन मतलब के ही लोग कुछ कुछ बातें करते है इस तरह कि बातें जीवन पे असर कर देती है
लब्जों के अंदर अलग तरह कि सोच तो होती है पर कभी कभी लब्जों के सोच को दुनिया नहीं दिखती वह जीवन में अलग किसम कि सोच हमें नहीं छूती है
लब्जों के अंदर एक पेहचान होती है जिसे हम परख लेते तो जीवन में मुस्कान देती है जीवन के अंदर अलग अलग एहसास तो होते है पर कभी कभी वह लब्ज हम बस कह देते है
लोग उसका मतलब समज लेते है पर कभी लोग जो जीवन मे कहते है वह बिना मतलब  जीवन पे असर कर लेते है जब वह लोग जीवन को सही मतलब से समजते है
जब जब हम जीवन के अंदर अलग दिशा बातों से चुनते है उन बातों के मतलब जीवन पर असर कर जाते है बातों मे छुपे मतलब जीवन पर असर कर जाते है
पर वह बातें सच नहीं होती लोग हमे यू ही बेहलाते है बातों कि सच्चाई पर अलग अलग नतीजे आते है वह हर बार जीवन पर ग़लत असर कर जाते है
बातों कि सच्चाई को पहले परखे क्योंकि वहीं हमे सही दिशा तक हमेशा ले जाती है पर अगर बातों मे बस जूठ हो तो दुनिया सिर्फ़ मुसीबत बन जाती है

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