Tuesday 29 September 2015

कविता २२५. डर का असर

                                        डर का असर
हर बार सोच के अंदर सही किसम कि सोच जीवन को नई रोशनी देती है जीवन के अंदर शुरुआत होती है जो हमे रोशनी का नये तरह का एहसास हमेशा मन को छू लेता है
जीवन का अलग एहसास सही दिशा दे जाता है सही तरीक़े से हमे जीना सिखाता है जीवन को परखे तो जीवन नई उम्मीदें दे जाता है जीवन के हर मोड़ पर कुछ तो असर हो जाता है
जीवन को समज लेना ज़रूरी एहसास बनकर जीवन छा जाता है जीवन के अंदर अलग अलग सोच का जिन्दा होना मन को भाता है जीवन को जो हर मोड़ पे जीना सीख ले वहीं ख़ुशियों कि सौगाद पाता है
हर बारी जिसे हम समज लेते है उस सोच मे जीवन ख़ुशियाँ दे जाता है जीवन मे अलग अलग दिशाओं मे कुछ अलग अलग सा मतलब नज़र आता रहता है
जीवन कि राहों पर अलग एहसास जो जिन्दा कर जाता है उस राह पर अपनी अलग सोच जो हर बार जीवन को आगे ले जाती है पर जाने क्यूँ कभी कभी लोगों कि सलाह मुसीबत बन जाती है
राहों को आगे ले जानेवाली सोच मन मे आती है वह हर मोड़ पर हर कदम मे जीवन का अलग रंग दिखाती है जीवन के अंदर नई उम्मीदें जिन्दा हर पल हो जाती है
जीवन को हर बार जो परखे नई सुबह हमेशा जीवन मे रंग नया ले आती है नई रोशनी हर पल अँधेरे को काटने कि ताकद अंदर रखती है पर दिलचस्प बात तो यह होती है
वह रोशनी अँधेरे का डर ले जाती है और फिर अँधेरे मे भी जिन्दगी हमेशा भाँति है क्योंकि जब डर भाग जाये तो अँधेरा बन जाता हमारा साथी है
अँधेरे मे कुछ बुरा नहीं दिखाता अगर उस से दोस्ती हो जाती है डर हमारा सबसे बड़ा दुश्मन होता है उसे दूर रखे तो हर चीज़ से दोस्ती है बस डर का दूर जाना जीवन मे ज़रूरी है
अगर डर चला जाये तो जीवन मे कभी किसी चीज़ कि कोई भी ना मजबूरी है और अगर हम नई रोशनी अपना लेते है तो डर पैदा नहीं कर जाता कोई मजबूरी है

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