Friday 11 September 2015

कविता १८९.. हंस कि सुंदरता

                                            हंस कि सुंदरता
हंस कि सुंदरता मन को छू जाती है उसकी हर चाल ढाल जीवन को छू जाती है पर अफ़सोस तो यह हंस को देखने की फुरसत कहा हमे हर अपनी धुंद मे आगे जाते है
सुंदरता ही जीवन मे नये रंग लाती है उसका असर जीवन पर हर बार वह लाती है जीवन को जो हम समजे तो दुनिया अलग नतीजा लाती है हंस से ज़्यादा लोगों को अपनी खूबसूरती ही भाँति है
सब कहते है खूबसूरत कई चीज़ों को पर बस खुद को ही हम चाहते है खुद से उठकर देख ना पाये पर फिर भी बात बड़ी बड़ी करते है जीवन को कैसे समजे हम जब खुद पर ही सारा वक्त जाया करते है
अफ़सोस नहीं अगर कोई दे अपना वक्त खुद को पर दुःख होता है जब गैरों के लिए काम करने का दम भरते है अपने ही घर मे सबकुछ रख कर गैरों पर उंगली धरते है
काश की दुनिया समज लेती की हंसों की कदर लोग कहा करते है वह तो सिर्फ़ दिखावा करते है जीवन मे तो हंसों से पैसों पर ही वह मरते है पर ख़ुशक़िस्मत तो यह दुनिया है
की खुदा ख़ास बनाए हुए कुछ बंदे है जो पैसों की जगह हंसों को देखते रहते है हंसों को सिर्फ़ नहीं वह दुनिया मे कई और भी चीज़ें चाहते है जिनको परखने मे वह अपना वक्त गवाते है
हंसों की उस सुंदरता को हम लोग समज नहीं पाते फिर भी आसानी से कह देते है हंस सबकुछ आसानी से पाते है जिसको सब अनदेखा कर के जाते है वह भला आसानी से क्या पाते है
हंसों को तो अक्सर कई दूर जगह पर रखते है हंस कहा सबके साथ रह सकते है बातें चाहे कितनी भी कर ले पर हंस जीवन को खूबसूरती से भरते है और दौलत के चाहनेवाले उसे नफ़रत से भरते है
हंस के अंदर तरह तरह के खूबसूरत रंग तो होते है हंस तो जीवन को असली मतलब देते है पर कभी हंस हमारे मन की तसल्ली से देखते है पर कभी वह मन को एक चोट भी देते है
क्योंकि उनको जब जब देखते है दुःख होता है दुनिया के सोच पर जो उन्हें छोड़ दौलत की ओर चलते है पर क्या करे यह तो दुनिया है जिसमें लोग चोट खाकर ही समजते है

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