Sunday, 6 September 2015

कविता १७९. सच्चाई

                                                                     सच्चाई
सूरज की किरणों से पूछा तो कोई बहाना नहीं मिला सच से भागने का जीवन में कोई तराना नहीं मिला नहीं मिला जीवन रुकने को कोई बहाना क्युकी कोई बहाना बना नहीं है
सच से भागने की चाहत का फ़साना हमेशा गलत रहा सच से जब जब भागे मन से खुशियों का तराना चला गया हर बार खुशियों को जो समजे जीवन को समजना बाकी रह गया
सच तो बस वह ताकद है जिस से दूर रहना मुमकिन होता नहीं है सारी चीजों के अंदर उसे खो देते है पर फिर भी सच्चाई वह चीज़ है जो लौट के ज़रूर जीवन मे वापस आ जाती है
सच्चाई कि ताकद हम कई बार नहीं समजते क्योंकि सच्चाई कई बार एक कोने में चुपचाप बैठ कर सही मौक़े का इंतज़ार करती है सच्चाई छुपती नहीं वह सिर्फ़ अलग राहसे हमारे सामने आती है
सच्चाई तो वह सोच है जो जीवन पर असर कर जाती है सच्चाई तो वह ख़याल है जो जीवन का मतलब बनाती है सच्चाई से समजे तो वह जीवन मे उम्मीदें देती है पर उसे अनदेखा कर दे तो काटे चुभा देती है
सच्चाई को अपना लो तो ही जीवन में ख़ुशियाँ आती है मुश्किल लगती है पर सच्चाई हमारा सबसे बड़ा साथी है जिसे अगर मजधार पे भी छोड़ा तो साथ निभाती है
सच्चाई से बेहतर ना कोई था ना कोई होगा हमारा साथी है सच्चाई के साथ जीवन पे कुछ तो असर होता है सच्चाई का जीवन पर हर बार कोई तो असर अक्सर होता है
जीवन में सच्चाई का कोई तो अहसास होता है जीवन के अंदर सच्ची बातों का उम्मीद से सीधा असर हमेशा होता रहता है सच्चाई तो मन को हर बार उजाला दिखाती है
वह रोशनी तो सच्चाई है जो जीवन में उजाला लाती है साथी मान लो तो अच्छा है क्योंकि वह तो साथ ज़रूर निभाती है तो हम माने या ना माने पर वह जीवन मे तो आती ही है
अपनाओ सच्चाई को क्योंकि वह सबसे बेहतर साथी है वह साथ तो अपना रहेगा ज़रूर आप ख़ुशी से अपना मानो या नफ़रत से उस से आपकी किस्मत ही तय हो पाती है

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