Thursday 3 September 2015

कविता १७३. अनपढ़ी किताब

                                                               अनपढ़ी किताब
हर बात समजना आसान नहीं होता पर काश के लोग हर बार असर करते जब जब जीवन में लोग आगे बढ़ते है हर बार वह बस यही कहते है
हर बात वह समज चुके है जब के वह सोच में कोई ना असर हो जाता है हर बार जीवन में कोई तो सोच हमें जीवन में नये रंग दिखाती है
पर लोग हर बार समजते रहते है की सोच अंदर कोई तो असर कर जाती है फिर भी हम हर बार सोच में अधूरे होते है तो क्यों नहीं हम मानते है
अगर हम नहीं समजते तो जीवन पर कुछ तो असर  कर पाते है हम अलग तरीके से बार बार सोचते रहते पर जब सोच हम पर असर कर जाती है
ना समज पायी बात भी समजी हुई नजर आती है जीवन पर वह असर करती है जिन्दगी कुछ अलग नजर आती है जो जीवन को चोट पहूँचाती है
क्युकी हर बार हम सोच रहे जीवन सही तरह से समजो जरुरी बात यह होती है की बात हमें समज नहीं आयी है बात के अंदर छुपी बाते हम पर क्या असर लाई है
हमने बाते जब नहीं समजी है तो समजने के सोच से जिन्दगी सिर्फ मुश्किल बन जाती है क्युकी कुछ बाते तो असर करती है कुछ आगे बढ़ जाती है
तो कुछ बाते मन को गलत दिशा दिखाती है जब हम सोच रहे है सही दिशा ही जीवन का यह समजना होती है जो जीवन में खुशियाँ लाती है
जीवन के अंदर वह बात कई मुसीबते लाती है जब जीवन में असर नये तरह की सोच जीवन को नया असर दे जाती है जब जब हम जीवन को छू जानेवाली है
आसान चीजे समजना भी मुश्किल है यह जब हम आसानी से समज जाते है तभी जीवन में अलग अलग तरीके के रंग हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते है
क्युकी हम तो बस यही चाहते है की बात को हम नहीं समजते यह बात हम सही तरीके से समज जाये तो बाते असर कर जाती है
तो अगर हम समज जाये तो मुश्किल बाते भी आसान हो जाये पर हम नहीं समजते जीवन को क्युकी नहीं समजे है यही हमारी समज ना आये
अनपढ़ी जीवन की किताब को हम पढ़ी हुई किताब समज के जीवन में हर बार हर मोड़ पर जीवन में धीरे धीरे आगे बढ़ते जाते है 

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