Saturday 19 September 2015

कविता२०४. हर लब्ज

                                          हर लब्ज
हर लब्जों को समजे तो अलग एहसास होता है पर लब्ज ही सबकुछ नहीं होते ज़रूरी उनके अंदर का एहसास होता है हर पल लब्ज को समज लो तो कुछ मन को छूने का आभास होता है
पर कुछ लब्ज छुपते है मन मे कुछ उस तरह से कि जीवन मे नया उजाला होता है लब्जों मे दुनिया का हर नजारा दिखाता है अगर लब्ज को परख ले तो नई शुरुआत देता है
लब्ज तो हर पल जीवन का हिस्सा है पर कुछ लब्जों को भूल जाना जीवन मे एक पल मे ही हो जाता है पर कुछ लब्जों के अंदर जीवन का मतलब छुपा होता है
जीवन जाने कितने लब्जों से भरा होता है वह ख़ुशियों कि और गमों कि दास्तानों से बना होता है जीवन को अगर ठीक से परखे तो कई बार हमने भूला दिया होगा वैसे किस्सों से जीवन भरा होता है
हर लब्ज को समज पाना है सारी शब्दों को समज लेना होता है उन्हें सारी चीज़ों का समज लेना हर बार ज़रूरी होता है जीवन हर बार मुश्किल होता है
जो लब्ज जीवन से हर बार आते रहते है कभी कभी जीवन मे आगे बढ़ना भी ज़रूरी होता है सारी कहानियाँ जो जीवन को अक्सर बनाती है वह जीवन कि सच्चाई सामने लाती है
कुछ कुछ लब्जों को समज लेना जीवन का हिस्सा तो ज़रूर होता है पर उन्हें हर बार समज लेने का मौका तो हमेशा नहीं मिलता है जीवन को हम ख़ुशी से जियें यह ज़रूरी होता है
और उसी बजह से हम लब्जों को समज ले यह हमारी मजबूरी होती है जीवन को जो समजे वह सोच ज़रूरी होती है उस लब्ज को हम हर बार परखे यह हमारे लिए बहोत अहम होता है
पर फिर ऐसे लब्ज जीवन मे बाकी रह जाते है वह हर बार जीवन को नये सीरे से सिखाते है लब्जों कि हर बात को जो याद रखते है पर उनसे न चोट खाते है वही जीवन मे आगे बढ़ जाते है
लब्ज तो हमको हर बार समजने होंगे उनसे ही तो जीवन के क़िस्से बनाने होंगे लब्जों से चोट नहीं खानी है उनसे ही दुनिया को समज लेना होगा लब्ज तो दुनिया को बनाता है उसे हँसकर समज लेना है

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