Wednesday, 9 September 2015

कविता १८५. बगीचे का फूल

                                                              बगीचे का फूल
पेड़ की शाखों पर पत्तों से ज्यादा जरूरी फूल लगता है क्युकी वह मशहूर होता है पर अगर पत्ते ही गम जाये तो क्या मतलब उस डाली का जिस में सिर्फ फूल होता है क्या फायदा अगर पेड़ बढ़ना पाये तो क्या फूल तब काफी लगता है
क्युकी वह मशहूर होता है क्या काम की चीज़ वह दुनिया जिसमे अपना ही अपने से दूर होता है सिर्फ लोगों की चाहत से क्या कोई खूब होता है जो दूसरों को जीवन ना दे पाये वह सिर्फ दो पल का ही नूर होता है
चाहे कोई कुछ भी कह दे जीवन में जीना ही है सब चाहते है जो सबको साथ लेके चलता है वही फूल माली का गुरुर बनता है खास होना तभी जीवन में खास बनता है
जब पत्तों के बीच में चुपके से फूल खिलता है जब जब शर्माकर वह पत्तों पे पीछे छिपता है वही मासूमसा फूल जीवन का तोहफा बनता है कोई थाट से कह दे की हम हर बार जीत के ही  कहते है
वह उस बगियाँ में क्या खुशियाँ ला पाता है जो अपनी दुनिया में ही मग्न हो वह कहा दूसरों के दुखों में रोता है प्यारासा सीधासा एक मासूम फूल ही सचमुच मशहूर बन पाता है
क्युकी उसे पत्ते चाहते है तभी तो वह खुद को पाता है दुनिया को नाजुक भले लगे वह पर जीवन का मतलब वह समज जाता है फूलों की मेहफिलमे वही फूल सबसे भाता है
जो जीवन की मंजिल को हमें अच्छे से समजाता है वह फूल ही है जो यह बताता है की मशहूर तो वह होता है जिसे दूसरेको आगे लाना चाहते है वह नहीं जो दूसरोंको फेक कर आगे आता है
माली जो बगियाँ बनाता है वह फूलों से पत्तों से पेड़ों के हर हिस्से से वही चाहत रखता है वह फूल किस काम का जो जीवन में सिर्फ खुद से ही होता है जो दूसरों के संग आता है वही दुनिया रोशन बनाता है
चाहे वह कितना छुप जाये आखिर पत्तों के अंदर से वह तो निखर आता है जिसे आगे बढ़ने के लिए पूरा बगीचा मेहनत करता है हमें तो बस वही फूल मशहूर नज़र आता है
इसलिए नहीं की क्योंकि वह सबसे खूबसूरत होता है इसलिए क्युकी वह सबकी उम्मीदों का किनारा होता है सिर्फ उसे बाग का माली नहीं पूरा बगीचा चाहता है वह दूसरों की कदर समजता है

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