Tuesday, 4 August 2015

कविता ११४. हम रोना छोड़ दे तो

                                                       हम रोना छोड़ दे तो
हम समज नहीं सकते ऐसी बातों में भी जिन्दगी मजा देती है अगर हम रोना छोड़ दे तो जिन्दगी कम ही सजा देती है हम जब समज ले तो जिन्दगी हमें नयी सोच सीखा देती है
पर जीवन में रोना हर बार तो होता है और वही से हमारी मुसीबत शुरू होती लोग अक्सर यही सोचा करते है जो रोते है उनके आँसू बहते है
पर हमसे पूछे तो बस दिल यह कहता है जीवन में रोना तो तब होता है जब हमसे उम्मीदों का खो जाना होता है उम्मीद का बिछड़ना मन को दुःख देता है
पर सचमुच में हम तो बस वही देखते है जिनमें आँसू का होना होता है पर जब हम मन में उम्मीद रख के रोते है वह तो दुनिया से कुछ पल का रूठना और मनाना होता है
जिसे अगर कोई मन से उम्मीदों को खो दे तो ही वह सचमुच का रोता है उसकी आँखों में आँसू हो ना हो पर उसका जीवन साँस के संग होते हुए भी जीवन का खो जाना होता है
हर बार जब हम उम्मीदों से देखे तो जीवन में कोई ना कोई किनारा तो होता है पर जब हम सहारा ढूढे जीवन बिन सहारा होता है
जो किसी ओर के लिए सहारा बने उसका तो सहारा उप्परवाला होता है पर जो उम्मीदों को खो दे वह उस खुदा को कभी ना पाता है
जब जब हम आगे बढ़ जाये उम्मीदों के साथ ही अपना आना जाना होता है तो उन उम्मीदों को मत खोना फिर चाहो तो रो दो फिर भी खुशियाँ का जीवन में आना होता है

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