Monday 3 August 2015

कविता ११२. बातों के अंदर की बाते

                                                           बातों के अंदर की बाते  
कुछ लोगों से हम कुछ कह दे वह आसानी से सुनते है पर कुछ लोग हमारी कही बातों पर सवाल भी करते है दोनों में क्या सही है
हम तो बस उतना समजते है दोनों ही बातों में लोग सही होते है हर बात कोई टोके यह सही नहीं होता पर गलती पर भी ना टोके तो वह दोस्त नहीं होता है
तो कुछ जगह कोई टोके वह लोग सही होते है वह कुछ लोग बार बार टोकने पर भी गलत नहीं लगते है जो अच्छे से टोके वह भी एक तरीका है
पर कुछ लोगों की तारीफ भी लगती एक धोका है और कुछ लोग तो सिर्फ टोकने के लिए ही बने होते है उनके हर बातों के बस बेमतलब किस्से होते है
सब से जरुरी तो इन्सान की नियत होती है जो जीवन को बनाती है और जीवन को समजती है सही नियत की कोई भी हरकत सही होती है
गलत नियत की कोई भी बात बस मन को दर्द देती है लोगों को हम समजे यह अहम होता है क्युकी जीवन का मतलब तो उनमे ही होता है
जीवन में दोस्त मिले यह जरुरी नहीं होता पर दुश्मन को दोस्त ना समजे वही जरुरी होता है हर बार हमें सिर्फ यही समजना है
की सही इन्सान से गलत इन्सान को अलग करना है जीवन में हर बार इन्सान को समज नहीं सकते है जो हम चाहते है
उस सोच को हम समजते है पर हर बात के अंदर की कई बाते हम नहीं समज सकते है क्युकी कई बार गलत बात को  हम सही समजते है
जीवन पथ की गाड़ी को गलत पैयो से चलाते है और फिर हर बार यही समजते है की हम सही तरह की सोच दुनिया में नहीं रखते है
अगर हम सही दोस्त बनाये तो जीवन पथ पर हर बार हम सही दिशा में चलाते है और उस दिशा को हर बार हम समजते है 

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