Saturday, 22 August 2015

कविता १४९. बात कहना

                                                                      बात कहना
बातों बातों में हम जो कुछ कह दे तो समजना अक्सर आसान नहीं होता जो कहना था वह लोग कह तो देते है पर उन्हें बदलना आसान नहीं होता
क्युकी जब कोई कुछ कहता है तो बस उसी में रहना चाहता है उस बात को समजना आसान नहीं होता जो सही मायने में समज जाते है
उन्हें उस बात को बताना जरुरी ही नहीं होता कुछ लोग होते है जिन्हे हम फुरसत में समजाते है उन्हें समजना जरुरी नहीं होता
वह बात जिसे हर पल हम मन से समज सकते है उसे समजाना जीवन की मज़बूरी नहीं होता जो समजना चाहता है
वह हर बात समजता है पर जो नासमजी में ही रहना चाहे उसे समजाना जीवन को सिर्फ दर्द है देता हमे तो बस आगे बढ़ना है
हमें सिर्फ बातों में कहने जाना ही जीवन में जरुरी है लगता पर फिर भी लोग उस बात को गलत तरीके से समज लेते है
उनका इस तरह से आगे बढ़ना जीवन में सही नहीं लगता जीवन के हर मोड़ पर कुछ तो अलग होता है जिसे समजना खुद से होता है
हर बार लोगों को समजाना मुमकिन नहीं होता हमें तो आगे बढ़ना है जीवन के अंदर आगे बढ़ना आसान नही होता तो दिल समजता है
हर बार हम जीवन को समजे तो जीवन का मतलब हर बार समजना हमें आसान और प्यारा नहीं लगता तो कुछ लोग को उसे समजना ही नहीं होता
तो उनको बस बात समजाकर हम आगे बढ़ जाये पर उन्हें जीवन में हर बार और हर राह पर समजना इतना आसान नहीं होता 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५७०७. अरमानों की आहट अक्सर।

                       अरमानों की आहट अक्सर। अरमानों की आहट  अक्सर जज्बात दिलाती है लम्हों को एहसासों की पुकार सरगम सुनाती है तरानों को अफसा...