Saturday 1 August 2015

कविता १०८. फूल और काटो में से एक

                                                       फूल और काटो में से एक
जीवन सिर्फ काटो को ही नहीं कभी फूलों को भी समजना होता है काटो को तो हम समज लेते है पर फूलो को ही कभी कभी भुला देते है
जीवनको तो दोनोंको बराबरी का मौका देना होता है जीवन को समजो तो उसमे भी नये तरह का जीना होता है फूलों की मासूमियत में जीवन का मजा होता है
पर अक्सर काटो से जुड़ कर रोने में भी हमारा वक्त गुजरता है जब जब नाजुक फूलों को छू ले तो जीवन में नयी नयी उम्मीदों का आना होता है
पर फूलों को अनदेखा कर के जानेसे क्यों जीने में मुसीबतों का आना होता है हर मोड़ पे जब हम जीवन को समजे उसमे नये मोड़ का आना होता है
कोमल चंचल फूलों को जब जब हम छू लेते है सारी प्यारी नाजुक चीज़ों के अंदर हर बार हमे  दुनिया में सिर्फ खुशियाँ मिलती है
हर बार सुंदर नाजुक चीज़ों में दुनिया के कई तरह रूप मिलते है फूलों के संग हम काटो को भी हम समजते है पहले तो काटो को समजने की जरूरत होती थी
अब फूलों को ही हम नहीं समजते  काटो से ही इस कदर प्यार हुआ है की दुनिया में फूलों की ही कदर नहीं करते जाने कब हम फूलों और काटो को दोनों को चाहेंगे
कभी कभी हम  फूलों की तो कभी काटो की कदर करते है इस जीवन में हर मोड़ पर हम अपना जीवन जीते है काटो की राहों पर चल कर फूलों को समजते है
तो जब हमें दोनों को अपने साथ रखना है जाने क्यों हम उनमे से एक को हर बार चुनते है जब जब हमें दोनों हासिल है
हम जीवन में क्यों सोचा करते है फूलों को जीने की जगह काटो पर चलने की जगह हम दोनों में से एक को अक्सर चुनते रहते है 

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