Wednesday, 19 August 2015

कविता १४४. पूरी बात

                                                                        पूरी बात
कुछ नयी बाते जिनमे हम जीना चाहते है वह हमें समजा दे हम क्या कहना चाहते है हम जानते है हम हर दम जीना चाहते है
सोचते है जाने क्यों उसी बात से जुड़े है हम जिसको हर दम हर राह पर समजना चाहते है जीवन के कई मोड़ तो आते जाते रहते है
हम हर मोड़ को बार बार समजना चाहते है कुछ बातों से हम ऐसे जुड़े है की हर बार जीवन से जिसमे असर हम समजना चाहते है
हर बात में कोई तो असर है जिसमे हम जीवन की धारा को हर बार देखना चाहते है जीवन तो वह सोच है जिसमे हम जीना चाहते है
पर एक बात के अंदर की कोई दूसरी बात हम समजना चाहते है क्युकी हमने देखा है अक्सर लोग बात अधूरी ही कहते है
जिन्हे हम हर बार समजना चाहते है बाते तो अक्सर जाने क्यों लोग अधूरी ही बताते है जिन्हे समजे हम उन बातों के ही कई मतलब निकलते है
एक बात के अंदर ही हम अपनी दुनिया बसा के आगे चलना चाहते है जब जब हम बातों को समजे उनमे जीवन को समजना चाहते है
पर कभी कभी कुछ बातों को तो हम अनदेखा कर देना चाहते है जिन्हे समजे उन बातों के अंदर हम जीवन को सिर्फ समेटना नहीं चाहते है
हम जानना चाहते है जीवन को हर बार उसे हर बात में परखना चाहते है जब जब हम जीवन को समजे उसे हर बात में जीना चाहते है
पर आधा सच तो गलत लगता है तो उसे पूरा समजना चाहते है ऐसी ही कोशिश में जिये है हम की हम जीवन को समजना चाहते है 

No comments:

Post a Comment

कविता. ५४६७. राहों को अरमानों की।

                            राहों को अरमानों की। राहों को अरमानों की सोच इशारा दिलाती है लम्हों को अल्फाजों की पहचान तराना सुनाती है जज्बातो...