Tuesday 18 August 2015

कविता १४२ एक आहट

                                   एक आहट
कभी कभी खामोशी मे भी एक आहट सुनाई देती है उसे क्या समजे यह हमारी सोच पर निर्भर होता है उसे समजे या समज ही ना पाये हर मोड़ पर आप उसे क्या समजते है
ख़ामोश से ख़यालों मे दुनिया के अल्फाज होते है जिन्हें हम जीवन मे हर पल समजा करते है सोचते है हम काश जीवन आसानी से जाता तो हर आहट मे हम मुश्किल को अक्सर समजते है
क्योंकि हर आहट पर कोई तो अहसास पाते है हर बारी जीवन मे ख़ुशियाँ मन मे हम पाते है उनको समजे तो जीवन मे नई आशाएँ लाते है हर सपना जो हम समजे तो उसे आहट में पाते है
उन आहटों को समजलो तो उनमें हम दुनिया का कोई हिस्सा हर बार ज़रूर पाते है आहट तो वह होती है जिसमें हम दुनिया जी लेते है हर आहट को हम अच्छे से जी लेते है
अगर उसमें कोई अच्छाई हम ढूँढ़ लेते है तो उसी आहट मे राहत भी समज लेते है हम हर बार आहट के अंदर कोई ना कोई ख़याल चाहते है पर आहट मे कुछ तो तलाश होती है
जब हम उस हल्की से आहट मे दुनिया को समज लेते है हर आहट के अंदर हम जीवन को समज लेते है उस आहट के अंदर नयी उम्मीद हर बार हम हमेशा रखते है
आहट मे हमे दुनिया की नई सोच को जीना सिखाना है हमे उस आहट को चाहना अपने मन को अपनाना होगा जीवन मे हर आहट मे उम्मीद को जिन्दा रखना होता है
आहट मे हर बार जीवन को समजना होगा उसे सही तरीक़े से हमें आगे बढ़ाना ज़रूरी होता है जब जब हम आहट मे दुनिया को समजते है उस आहट मे जीना ज़रूरी होता है
हर आहट मे हमें जीवन को समजना ज़रूरी होता है क्योंकि आहट ही तो जीवन की वह शुरुआत है जिसे हमें जीवन को सही तरीक़े से जीना होगा उसे हर बार समजना होता है
आहट मे जीवन को हर बार समजना होता है आहट मे ही सही बात को जो समज जाये उसके लिए जीवन को समजना कभी मुश्किल नहीं होगा भले आहट को समजना मुश्किल हो पर उसे समजना ही अक्सर सही होता है

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