Sunday, 16 August 2015

कविता १३७. सीधी राह की मंज़िल

                                                            सीधी राह की मंज़िल 
कभी जो कुछ कह दे तो खास नहीं लगता पर कभी कभी जो अल्फाज होते है उनमे अहसास नहीं होता जब जब हम आगे बढ़ जाये जीवन में सीधा रास्त्ता नहीं मिलता
पर पर कभी टेढ़ा रास्त्ता ही जीवन में सीधा हमें है दिखता जब जब आगे बढ़ जाये उम्मीदों की शुरुवात नहीं रूकती टेढ़े जीवन में भी सीधी राह की आस नहीं रूकती 
जब जब हम आगे जाते है जीवन में कोई आवाज नहीं सुनाई पड़ती क्युकी अल्फाजों के बीच में आवाज कुछ इस तरह से छुप जाती है की अहसास नहीं बन सकती 
जब जब जीवन को तलाशे उनमे हर तरह की सोच जो पैदा होती है वह अहसास मन में जरूर बना देती है तलाश तो उस सोच की है जिसमे दुनिया जिन्दा होती है 
हम हर बात को समजले तो दुनिया आसान नहीं होती क्युकी दुनिया की हर बात जो अहम होती है उसमे जीवन की सही शुरुवात आसान और सीधी नहीं होती 
जब जब हमारे पाव मंज़िल को छूते है वह कोशिश आसान नहीं होती  जो दुनिया को रोशन कर दे वह राह हमें सही तरह की मंज़िल हर बार जीवन में नहीं देती 
सीधी साधे रास्त्तो पर हमें अलगसी दुनिया हमेशा है दिखती टेढ़ी राह पर चलना आसान लगता क्युकी दुनिया वह आसानी से है चलती पर ध्यान से देखोगे तो समजोगे की 
वह दुनिया आखिर में बरबाद है करती मुश्किल राहो पर ही हमेशा सही तरह की दुनिया है हमें हर बार हर मोड़ पर सच्चाई हमें है दिखती 
यह आप पर है क्या चुनते है क्युकी कोई राह भी आसान नहीं होती जो राह आसान हो उसमे अलग तरह की दुनिया हमें अक्सर है दिखती 
सीधी राह पर चलनेवालों को हमेशा मंज़िल है मिलती क्युकी मंज़िल तो वह चीज़ है जिसके बिना हमारी दुनिया हमेशा खाली खाली सी और अक्सर अधूरी है दिखती 

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