Thursday, 13 August 2015

कविता १३२. कुदरत की अच्छाई

                                                                कुदरत की अच्छाई
पत्तों के अंदर तेजीसे हवा की बजह से आती है जब जब वह आवाज सुनी है दुनिया कुछ अलगसी मन को लगती है
जब जब पत्ते हिलते है दुनिया में नयी खुशियाँ सी आती है जिनको हम समज गये वह दुनिया उम्मीदों से ही बनती है
यह तो बस हम पर है की हर चीज़ हमें क्या कह जाती है जिस चीज़ को हम मन से समजे वह हमें हर पल खुशियाँ दे जाती है
हर हर मौसम की आहट की बजह से जो महसूस हो पाती है दुनिया तो हर एक मोड़ पर कुछ ना कुछ असर कर जाती है
जाने क्यों जीवन में फिरसे खुशियाँ हमारे लिए तो बस हर मौसम की आहट लाती है जीवन एक ऐसा गीत है जिसमे कोई
नयी उम्मीदसी जीवन में आती है हर बार जो हम जीवन को समजे जीवन में एक नयी रोशनीसी आती है जब जब हम सारी बातें समजे तो उन्हें समज पाना ही जीवन की जीत होती है
जब हम कुदरत की सिर्फ सुंदरता देखे अपनी जीत तो होती है उस जीत की मन से हर बार तारीफ होती है दुनिया कुछ भी कहे या ना कहे
दुनिया तो रंग बिरंगी होती है जिसमे कभी जीते है और कभी कभी हार से भी मुलाकात होती है चाहे जो भी हो जाये दुनिया की बस यही रीत होती है
उसे जीनेवालों में जो हसना सीखे उनकी ही हर बार मन से जीत होती है जब जब हम आगे बढ़ जाये उम्मीदों की उम्मीद होती है
कुदरत में खुशियाँ ढूढो तो हर बार हमारी खुशियों से मुलाकात हर बार और हर मोड़ पर कही ना कही तो जरूर जीवन में होती है 

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