Thursday, 3 December 2015

कविता ३५५. कितने परेशान

                                          कितने परेशान
कितने परेशान वह दिन रात होते है जो जीवन मे अलग जस्बात देते है क्योंकि उनको ही जब हम जीवन मे परख लेते है कितने अधूरे वह एहसास हर बार होते है
कितनी बार हम सही चाहत को रोक लेते है जाने क्यूँ हम जीवन को समज लेने कि कोशिश हर बार करते है पर उस मेहनत मे हम सिर्फ़ परेशान होते है
कितनी मुश्किल से हम हर बार जीवन को समज लेने कि कोशिश मे होते है उस जीवन को हर मोड़ पर परख लेना चाहते है हम कितनी बार जीवन को समज लेना चाहते है
कितने परेशान होते है जब रास्ते मुश्किल नज़र आते है क्योंकि रास्तों को हम कहाँ परख पाते है रास्तों से ज़्यादा काश हम जीवन को समज लेना चाहते है
ख्वाब कितने आसानी मे आसमान के अंदर हमे ले जाते है वही ख्वाब जो जीवन को आसान लगते है वह कुछ मोड़ के बाद सुलझने कि बजह हर बार बनते है
कितने उम्मीद से हमारे जीवन के लम्हे हर बार चुनते है पर कितनी आसानी से सारे मोड़ जीवन मे उलझते है क्योंकि हम जीवन को कहाँ ख़ुशियों मे आसानी से झुलने देते है
कितनी आसानी से गमों को हम गले लगा लेते है ख़ुशियों को चुपके से दूर कर जाते है जीवन के हर मोड़ को अलग सोच से समज लेने कि ज़रूरत हर बार होती है
कितनी आसान वह कहानी हर बार होती है जो जीवन पर हर बार कुछ तो असर ज़रूर कर जाती है हर कहानी को समज लेते है वही तो जीवन को मतलब दे जाती है
कितनी आसानी से कभी कभी हम उस कहानी को अनदेखा कर जाते है जिसे समज लेना हम आसानी से भूल जाते है उसमें ही जीवन के कई मतलब हर बार छुपे होते है
कितने आसान दिखनेवाले रास्ते जीवन मे अलग अलग उम्मीदें दे जाते है हर कदम पर हमे आगे ले जाते है जीवन को कई आशाएँ और उम्मीदें हर बार दे जाते है

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