Saturday, 19 December 2015

कविता ३८७. मन कि शीतलता

                                           मन कि शीतलता
बारीश की बूँदे जो ना सीखा पाई वह तपती धूप सीखा गई जो किस्मत बताना भूल गई हो वह बदकिस्मती सीखा गई तो क्यूँ कोसे हम उस किस्मत को जो बाते अलग सुना गई
जब बूँदों से धरती को ठंडक मिल जाये वह बूँदे जीवन के अलग राग समजा गई धरती तो कुछ इस तरह से तप जाती है कि उसकी गरमी हमे आँच मे ही जला गई
जब ठंडक मन के अंदर होती है तो वह मुश्किल बाते जीवन को अलग मतलब हर बार सीखा गई तपते हुए रेगीस्तान कि मिट्टी भी तेल के साथ उम्मीद कि बूँदे जगा गई
जब जब हम आगे बढते है जीवन कि धारा कुछ रंग अलग ही दिये जा रही है तो हर मोड पर हर कदम पर दुनिया हर बार उम्मीदे दिल मे दिखा रही है
जिस गर्मी से डर कर भागे वही आग कभी उम्मीद कि एक नई शुरुआत जीवन मे हर बार दिखा रही है क्योंकि मुश्किल राहों से ही दुनिया अलग एहसास दिखा रही है
गर्म राह पर मन कि ठंडक कुछ तो उम्मीदे दिखा रही है जब जब मन से समज लेते है तो हर राह मोड पर कुछ मतलब जीवन मे हर बार सीखा रही है उम्मीदे दिये जा रही है
अगर हम समज ले तो जीवन मे उम्मीदे आती है क्योंकि धडकन से ही तो जीवन मे रोशनी आती है सक्त राहों से ही कभी कभी दुनिया रोशन कह लाती है
जीवन कि धारा हर बार अलग मतलब भी लाती है जिसे शीतल जल सा समज लेते है तो दुनिया बदल जाती है जीवन मे हर बार हर मोड पर खुशियाँ हर बार उम्मीदे दे जाती है
मुश्किल राहों से भी ज्यादा जीवन कि सोच उन्हे मुश्किल या आसान बना लेती है जीवन मे मुसीबत तो सही सोच से ही हटती है जीवन कि राहे हमे उम्मीदे दे जाती है
जब हम सुबह को मन से ढूँढे तो ही जीवन मे रोशनी आती है तो जीवन मे हर बार सुबह को चाह लेने कि जीवन को जरुरत होती है मन से अगर चाहे तो ही जीवन कि रोशनी हासील होती है

No comments:

Post a Comment

कविता. ५७०७. अरमानों की आहट अक्सर।

                       अरमानों की आहट अक्सर। अरमानों की आहट  अक्सर जज्बात दिलाती है लम्हों को एहसासों की पुकार सरगम सुनाती है तरानों को अफसा...