Saturday 26 December 2015

कविता ४०१. दुनिया कहती है

                                               दुनिया कहती है
जब हँसकर कोई बात हो पाती है जाने क्यूँ उसमे भी दुनिया रुलाना चाहती है उलझन जो आसानी से सुलझ जाए उसमे भी जीवन कि दिशा देना चाहती है
हँसकर जो बाते समज जाते है उन्हे दुनिया अपने निजी मकसद के लिए बदल कर आँसू को जीवन मे लाना चाहती है जो किनारे अधुरे रह जाते है उनमे दरार बनाना चाहती है
जब कोई कमजोर कडी रह जाती है  वह जीवन मे उसे बढाना चाहती है क्योंकि कमजोर कडी तो अक्सर मुश्किल बन जाती है छोटी छोटी बातों को वह बडी बनाना जानती है
कई बार काटा जो मन मे चुभ जाता है उसे हम निकाल ले पर उस से पहले ही वह नासूर बनाना जानती है तो फिर क्यूँ सुनते है हम उस दुनिया कि जो राहो मे काटे फैलाना जानती है
तो फिर क्यों हम दिल कि जगह दोस्तों कि सुनते नही क्योंकि उम्मीदों को साथ रखते हुए नाराजी से किनारे करते नही क्यों सोचते है क्या कहती है दुनिया जब गुनाह तो हम कोई करते नही
जो गलत हो उनको परवाह हो जहान कि पर उनकी जगह हम करते है और गलत लोग तो आसानी से जी लेते है पर हर मोड पर हम डरते है अगर हम यह बात समज लेते है
तो खुशकिस्मती होती है हमारे दोस्तों कि अच्छे से बनती है कहानी हमारे जीवन कि सही राह को समज ले तो ही हम खुश रह पाते है पर दुनिया भी उसे समजे हर इस जिद्द मे अटक जाते है
अगर सही राह पर चलते हुए हमे हमारे सही साथी के अलावा किसी कि न परवाह होगी तो ही हमारी सही तरह कि दुनिया होगी और उस दुनिया से जीवन मे हर पल खुशियाँ होती है
सही सोच को अपना लो तो जीवन मे हर पल कुछ नई शुरुआत होती है दुनिया कि कही बातों पर सोचो तो जीवन मे बस रात ही होती है जीवन कि नई शुरुआत होती है
सोच अगर सही तरह कि होती है तो जीवन मे सही तरह कि राह होती है पर अगर दुनिया कही पर हर बार चलते रहे तो कहाँ सही दोस्तों से मुलाकात होती है भरी सुबह मे रात होती है

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