Saturday, 5 December 2015

कविता 3५८. बिन सीखे जीना

                                         बिन सीखे जीना
जब मुस्कान को पाने कि कोशिश मे हम जुड़ जाते है अक्सर देखा है आँसू ही नसीब मे आते है मुस्कान कि छोटी कोशिश मे उसे हम खोते जाते है
मुस्कान को हर बार उम्मीदों से जीवन मे सिंचना चाहते है पर कैसे इस बात को कहाँ  हर बार समज पाते है बिना सीखे ही जीवन के हर सुर कि तरह उसे भी पाने कि कोशिश मे लग जाते है
कोई सिखा दे तो क्या बात है पर हम बिन सिखे भी जीवन का आलाप गाते है जीवन एक भगवान कि देन है इन्सान के लिए उसे बिन समजे भी जीना हर बार सीख जाते है
पर बात जब ना सिख पाए तो कमी तो उसमें अक्सर आती है जीवन कि कहानी अलग तरीक़े से जीवन मे कही जाती है कोई सिखाए तो अच्छा है पर हम गलतीओं से भी सीख ही जाते है
जीवन कि कश्ती जब हम बिना समजे चलाते है तभी  कुछ मोड़ पर हम हँसी कि जगह आँसू भी गलती से पा लेते है उन्हें समज लेने के लिए हम हर बार आगे चलते जाते है
हँसी कि रोशनी जो जीवन मे हम चाहते है उसे हम कभी पाते है और कभी भुला के आगे बढ़ते जाते है जहाँ हम जीवन की नई कहानी सीखते जाते है जीवन तो वह धारा  है जिसे हम परख लेना चाहते है
पर जब बिन सिखे ही हम गलती कर दे तो उन गलतीओं से हर बार हम समज लेना चाहते है गलती जो मन को दुःख दे जाए उस गलती से हम संभलकर सीख लेना चाहते है
हर बारी हर कदम जीवन अलग एहसास दिखाता है आँसू से जीवन को गलती से भर देते है जीवन के अंदर हमेशा कुछ तो असर हो जाता है क्योंकि जब हम ख़ुशियाँ दे जाते है
जीवन को बिना सिखे ही हम आगे बढ़ते है इसलिए जीवन मे कई मतलब अंदर छुपे होते है आँसू मे अलग मतलब होता है ख़ुशियाँ तो जीवन पर सही असर कर जाती है
ख़ुशियाँ जो जीवन मे रोशनी दे जाती है सीखना जीवन के लिए अहम होता है सीखना हर बार ज़रूरी होता है जीवन मे सही दिशा हर बार चलने के लिए ज़रूरी होती है पर बिन सीखे चले तो कभी कभी गलती करना मजबूरी है

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