Friday, 25 December 2015

कविता ३९९. खुशियाँ और गमों का जीवन

                                           खुशियाँ और गमों का जीवन
जब जब समज लेते है जीवन को हर बार खुशियाँ हजारो मिलती है जमीन पर रहनेवालों कि सजा यही होती है कि जीवन को समज पाये वह राह कहाँ मिलती है
पर वह राह जो मिल जाए तो उस पर चलना सही लगता है जीवन कि हर धारा को समज लेना बडा जरुरी होता है जीवन को परख ले तो खुशियों का आना जाना जरुरी होता है
पर मुश्किल तो यह होती है खुशियों का आना तो मन को भाता है पर जाना कहाँ मन को भाता है खुशियों के जहान को खो देना हर बार हमे मन कि नई सुबह दिखाता है
दुनिया के हर मोड पर खुशियों का आना तो सबको भाता है पर उनका चले जाना जीवन मे बस मुसीबत लाता है खुशियाँ तो हर बार जीवन का तोहफा बनती है
खुशियाँ तो वह एहसास है जो बनती है और बिघडती है जीवन के भीतर सोच का अलग एहसास होता है खुशियों मे जीवन को नई सुबह हर बार जीवन मे होती है
खुशियों को खो देने को कहाँ मन को कभी भाता है जो मन को नई उम्मीदे दे जाता है उन खुशियों मे ही मन हर बार जीना चाहता है पर जीवन को समज लेना गमों को समज जाना होता है
खुशी को ही पाने कि कोशिश मे  हर बार जीवन मे उम्मीदे  हम खो देते है आसमान को पाने के चाहत मे जमीन को ही हम जीवन मे भुला देते है क्योंकि जीवन के कुछ सीरे जमीन से ही जुडे होते है
खुशी ही तो जीवन को मतलब दे जाती है पर जीवन को समज लेने के लिए हर बार गमों को समज लेने कि भी जरुरत होती है खुशी हर कदम पर अहम होती है पर गम भी अहम होते है
तो गम और खुशियों को समज ले तो जीवन मे रोशनी होती है पर अक्सर सिर्फ गमों को रोकते रोकते हमारी खुशियाँ जीवन से गुम हो जाती है तो गमों को समज लो तो ही जीवन मे रोशनी आती है
तो गमों से डरना छोड दे तो हमने देखा है कि अक्सर जीवन मे सुबह आती है क्योंकि गमों को समज लेने से ही जिन्दगी समज मे आती है तो पहले गमों को समज लो तो ही दुनिया समज मे आती है

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