Wednesday 16 December 2015

कविता ३८१. पिछला कोई किस्सा

                                      पिछला कोई किस्सा
हर बार जो कुछ कह कर पिछे रुकना चाहा जीवन ने हर बार समज के फिर से जीना चाहा पर फिर लगता है जीवन को समज लेना बार बार बडा ही मुश्किल है
उसे परख लेना हर बार प्यारा नही लगता है हर मोड पर मुश्किल से हम आगे बढते है जीवन को अच्छेसे समज लेना बार बार हमे नही पसंद आता है
गलत बात को सही करने कि कोशिश मे हमे जीवन को फिर से जीना पसंद नही आता है जीवन कि धारा के नये सीरे से हम समज लेते है पर उसे बार बार जिना मन को नही भाता
तो इसलिए उस गलती को समज लेना जीवन मे कभी कभी जरूरी हो जाता है जिसे समज लेने से जीवन रोशन लगता है पर उस पल को फिर कहाँ जीने का वक्त हमे मिलता है
जीवन मे आगे पीछे जाना तो होता रहता है जीवन को सही धारा बनाना जरुरी होता है पर एक बार जिसे हम जी चुके उसे फिर से दोहराना मुश्किल लगता है
जीवन को सही बनाने के लिए उसे समज लेना जरुरी होता है पर उसे दोहराना हर पल गलत लगता है क्योंकि आगे बढ जाना सही लगता है जीवन को अलग एहसास देता है
जीवन कि कुछ बाते जो बदल लेनी होती है उन बातों को समज लेना बडा दिलचस्प लगता है तो जीवन को पिछली बातों मे समज लेना दिल को सिरदर्द लगता है
जीवन को आगे पीछे ले जाना हर बार जरुरी लगता है जीवन कि दिशा वही आगे जाती है जिस दिशा को इन्सान पीछे से समज लेता है उसे समज लेना जरुरी होता है
जीवन मे पीछे जाने कि जरुरत कहाँ होती है क्योंकि उसे तो भगवान बंद ही रखता है पर कभी कभी पीछे का कोई किस्सा आगे आ कर फिर से जीने पर मजबूर करता है
तभी हर बार लगता है जीवन के हर किस्से फिर जीने मे मजा नही आता है पुराना किस्सा हर बार पुराना रह जाये तो ही अच्छा होता है फिर से दोहराये तो वह रंग नही भरता है

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