Saturday, 19 December 2015

कविता ३८६. रेत का मजबूत घर

                            रेत का मजबूत घर
रेत का घर भी जीवन को मतलब दे जाता है जब उन्हे मन से समज लेते है रेत का गिरना हर पल जीवन का सच होता है रेत को चाहो तो ही तो उसके घर का मतलब होता है
रेत को समज लेना भी जीवन मे जरुरी होता है रेत से ही दुनिया का सच बनता है रेत जब गिरती है हाथों से खुशियाँ फिसल जाती है तो यह हम पर है
क्या हम समज पाते है कि वह खुशियाँ कुछ पल कि होती है कभी कुछ खुशियाँ तो जीवन का मतलब  बनती है पर कुछ खुशियाँ कुछ पल कि ही होती है
हमे उन खुशियों को समज लेने कि जीवन मे जरुरत होती है क्योंकि दो पल के खुशियों से भी तो बडी खुशियाँ मिलती है कभी जिन्हे दो पल कि समज के खो देते है वही हमारे सहारे बनती है
रेत तो आसानी से जीवन मे गिर जाती है पर फिर भी वह हमे चीजे बनाना सीखा देती है वह सीख ही तो जीवन कि जरुरत है क्योंकि वह सीख ही जीवन को आगे ले जाती है
रेत तो जीवन मे चीजे आसानी से बनाती है और बिघाड लेती है रेत कि हस्ती तो जीवन को कोशिश कि अहमियत बताती है रेत कि चीजे जीवन मे बदलती है
रेत से भी तो दुनिया आसानी से बनती और बिघड भी जाती है रेत कि दुनिया बस दो पल कि दुनिया होती है जो हमारी उम्मीद बना के फिर टूँट जाती है
यह तो हम पर होता है की क्या हम उम्मीद को पकड पाते है या फिर वह उम्मीद वही रह जाती है पर यह तो जीवन का सच है कि रेत कि दुनिया ही कभी कभी सपनों कि वजह बन जाती है
रेत सी आसान यह दुनिया हर बार नजर नही आती है पर वह इतने आसानी से कहाँ जीवन मे फिसल पाती है रेत कि दुनिया हर बात बनती और बिघड जाती है
रेत के एहसास से दुनिया हर पल बदल भी जाती है क्योंकि दुनिया कि यह खासियत है कि वह रंग अलग दिखाती है पर दुनिया मे मेहनत और सच्चाई हो तो दुनिया रेत के जैसा ही पर पथ्थर का मजबूत घर दे जाती है

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