Thursday 17 December 2015

कविता ३८३. मन कि पेहचान

                                    मन कि पेहचान
हर पेहचान के अंदर अलग बात होती है जो जीवन को रोशनी हर बार देती है अगर अपनी पेहचान को ही नही समज पाये तो दुनिया कहाँ उम्मीद देती है
खुद को समज लेते है तो दुनिया जीवन मे अलग उम्मीद देती है जिसे परख ले हम तो जीवन मे नई शुरुआत होती है अपने पेहचान को समज ले तो नई शुरुआत होती है
पेहचान तो अपने मन कि उम्मीद होती है पेहचान ही तो जीवन कि सौगाद होती है पेहचान तो जीवन को उम्मीदे देती है पेहचान लो मन को उस से शुरुआत होती है
मन के अंदर तो जीवन कि पेहचान हर बार बसती है पेहचान को समज लो तो दुनिया अलग एहसास रखती है क्योंकि मन के अंदर ही हमारी दुनिया रहती है
अपने आपको समज लो तो दुनिया कि सही तरह कि सोच हर बार अहम लगती है पेहचान को परख लेना मन को ताकद सी देता है जीवन मे पेहचान सबसे जरुरी होती है
जब खुदको समज ले तो ही जीवन मे अलग शुरुआत होती है जब मन कि धारा को उम्मीद आगे ले जाती है पेहचान तो मन का आईना हर बार होती है
खुद मन को परख ले तो जीवन कि शुरुआत होती है मन के अंदर अलग सोच दुनिया को अलग राह देती है पेहचान तो जीवन का वह हिस्सा होती है
पेहचान तो जीवन कि सच्चाई होती है उसे हर पल समज ले तो दुनिया मे नई रोशनी कि शुरुआत होती है मन कि पेहचान तो हर बार मन से जिन्दा होती है
मन के अंदर अलग शुरुआत होती है पेहचान तो मतलब जीवन को दे जाती है पेहचान ही जीवन मे सबसे अहम होती है पेहचान को मन से परख लेना ही उम्मीद दे जाती है
मन को पेहचान लेना ही जीवन कि जरुरत होती है जो मन को हर बार आगे ले जाती है वही तो मन कि सच्ची पेहचान होती है जो जीवन हर बार आगे ले जाती है क्योंकि कुछ भी कहो पेहचान ही जीवन कि शुरुआत होती है

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